गीत और गजलः श्यामल सुमन

देख के नए खिलौने, खुश हो जाता था बचपन में।
बना खिलौना आज देखिये, अपने ही जीवन में।।

चाभी से गुड़िया चलती थी, बिन चाभी अब मैं चलता।
भाव खुशी के न हो फिर भी, मुस्काकर सबको छलता।।
सभी काम का समय बँटा है, अपने खातिर समय कहाँ।
रिश्ते नाते संबंधों के, बुनते हैं नित जाल यहाँ।।
खोज रहा हूँ चेहरा अपना, जा जाकर दर्पण में।
बना खिलौना आज देखिये, अपने ही जीवन में।।

अलग थे रंग खिलौने के, पर ढंग तो निश्चित था उनका।
रंग ढंग बदला यूँ अपना, लगता है जीवन तिनका।।
मेरे होने का मतलब क्या, अबतक समझ न पाया हूँ।
रोटी से ज्यादा दुनियाँ में, ठोकर ही तो खाया हूँ।।
बिन चाहत की खड़ी हो रहीं, दीवारें आँगन में।
बना खिलौना आज देखिये, अपने ही जीवन में।।

फेंक दिया करता था बाहर, टूटे हुए खिलौने।
सक्षम हूँ पर बाहर घर के, बिखरे स्वप्न सलोने।।
अपनापन बाँटा था जैसा, वैसा ना मिल पाता है।
अब बगिया से नहीं सुमन का, बाजारों से नाता है ।।
खुशबू से ज्यादा बदबू, अब फैल रही मधुबन में।
बना खिलौना आज देखिये, अपने ही जीवन में।।


खुशी की दिल में चाहत गर, खुशी के गीत गाते हैं
भरोसा क्या है साँसों का, चलो गम को भुलाते हैं

दिलों में गम लिए लाखों, हँसी को ओढ़कर जीते
सहज मुस्कानवाले कम, जो दुनिया को सजाते हैं

है कीमत कामयाबी की, जहाँ पर लोग अपने हों
उसी अपनों से क्यूँ अक्सर, वही दूरी बढ़ाते हैं

मुहब्बत और इबादत में, कोई तो फर्क समझा दो
मगर उस नाम पर जिस्मों, को अधनंगा दिखाते हैं

चलो बच्चों के सर डालें, अधूरी चाहतें अपनी
बढ़ी है खुदकुशी बच्चे, अभी खुद को मिटाते हैं

सलीका सालों में बनता, मगर वो टूटता पल में
ये दुनिया रोज बेहतर हो, सलीका फिर सिखाते हैं

भला क्या मोल भावों का, सुमन पागल अरजने में
पलट कर देख इस कारण, कई रिश्ते गँवाते हैं

बेच रहे तरकारी लोग
प्रायः जो सरकारी लोग
आज बने व्यापारी लोग

लोकतंत्र में बढ़ा रहे हैं
प्रतिदिन ये बीमारी लोग

आमलोग के अधिकारों को
छीन रहे अधिकारी लोग

राजनीति में जमकर बैठे
आज कई परिवारी लोग

तंत्र विफल है आज देश में
भोग रहे बेकारी लोग

जय जयकार उन्हीं की होती
जो हैं अत्याचारी लोग

पढ़े लिखे भी अब सडकों पर
बेच रहे तरकारी लोग

मानवता को भूल, धर्म पर
करते मारामारी लोग

चमन सुमन का जल ना जाए
शुरू करें तैयारी लोग

हर बातों में हम होते हैं
यूँ सबके हमदम होते हैं
दुख के दिन में कम होते हैं

साथ निभाये जो आफत में
लोग वही मरहम होते हैं

शायर चलता लीक छोड़कर
उसके यही नियम होते हैं

जो टकराते वक्त से जितना
वही असल दमखम होते हैं

जहँ टूटता दिल अपनों से
आँखों में शबनम होते हैं

जैसी फितरत इन्सानों की
वैसे ही मौसम होते हैं

सुमन करे चर्चा औरों की
हर बातों में हम होते हैं

आँगन सूना घर हुआ, बच्चे घर से दूर।
मजदूरी करने गया, छोड़ यहाँ मजबूर।।

जल्दी से जल्दी बनें, कैसे हम धनवान।
हम कुदाल बनते गए, दूर हुई संतान।।

ऊँचे पद संतान की, कहने भर में जोश।
मगर वही एकांत में, भाव-जगत बेहोश।।

कहाँ मिला कुछ आसरा, वृद्ध हुए माँ बाप।
कहीं सँग ले जाय तो, मातु पिता अभिशाप।।

जैसी भी है जिन्दगी, करो सुमन स्वीकार।
शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार।।

श्यामल सुमन

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