गीत और ग़ज़लः गुलजार


पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो
मुझे तुमसे अपनी खबर मिल रही है

कई बार यूं भी हुआ है सफ़र में
अचानक से दो अजनबी मिल गये हो
जिन्हे रूह पहचानती हो अज़ल से
भटकते भटकते वो ही मिल गये हो
कुंवारे लबों की कसम तोड़ दो तुम
जरा मुस्कुराकर बहारें संवारो

ख़यालों में तुमने भी देखी तो होंगी
कभी मेरे ख्वाबों की धुंधली लकीरें
तुम्हारी हथेली से मिलती हैं जाकर
मेरे हाथ की ये अधूरी लकीरें
बड़ी सर-चढ़ी हैं ये जुल्फें तुम्हारी
ये जुल्फें मेरी बाज़ुओं में उतारो।

पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो…

रोज़गार के सौदों में जब भाव-ताव करता हूँ
गानों की कीमत मांगता हूँ –
सब नज्में आँख चुराती हैं
और करवट लेकर शेर मेरे
मूंह ढांप लिया करते हैं सब
वो शर्मिंदा होते हैं मुझसे
मैं उनसे लजाता हूँ
बिकनेवाली चीज़ नहीं पर
सोना भी तुलता है तोले-माशों में
और हीरे भी ‘कैरट’ से तोले जाते हैं .
मैं तो उन लम्हों की कीमत मांग रहा था
जो मैं अपनी उम्र उधेड़ के,साँसें तोड़ के देता हूँ
नज्में क्यों नाराज़ होती हैं ?
गुलजार

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