लेखनी संकलनःमां -हायकू

माँ

माँ के आँगन
गुड़िया पटोले से
बिटिया खेले !

माँ याद करे
बेटी का बचपन
गुड़िया देख !

माँ जान लेती
चेहरा पढ़कर
दिल की बात !

माँ की रसोई
पकवान बनते
ममता -पगे !

पानी बरसे
मठरी गुलगुले
माँ ने पकाए!

हवा में भरी
माँ की रसोई की ये
मीठी खुशबू!

सबसे बड़ा
है इस दुनिया का
तीर्थ मेरी माँ !

पारदर्शी माँ
जब कुछ कहती
दिल से सोचे !

जीती -जागती
मूरत होती है माँ
प्रेम- दया की !

हर जगह
जा नहीं पाया रब
तो माँ बनाई !

-डॉ हरदीप सन्धु

तौल सके जो
नहीं कोई तराजू
माँ की ममता!

समझ आई
जब खुद ने पाई
माँ की वेदना!

माँ का दुलार
नहीं है कोई मोल
है अनमोल!

असहाय माँ
कह न पाई व्यथा
कोख़ उजड़ी!

जो लुट गई
लाड़ में मिट गई
वो होती है माँ!

प्यारी बिटिया,
बन गई वो माँ-सी
गई पी-घर!

पराई हुई
घर-आँगन सूना
माँ की बिटिया!

सारा हुनर
माँ से बिटिया पाए
घर बसाए!

माँ का अँचरा
सारे जहाँ का प्यार
घर संसार!

माँ का कहना
कभी नहीं टालना
माँ होती दुआ!

माँ की दुनिया
अंगना में बहार
घर-संसार!

-जेन्नी शबनम

माँ की ममता
सकल ब्रह्माण्ड में
नहीं समता

माँ तुम हो
धरती आकाश में
हर साँस में

दुआएँ देती
सब दुख सहती
वह माँ होती

प्रेरणा देती
खुशियाँ ही बाँटती
स्वर्ग बनाती

कष्ट में होता
कहीं कोई , उसका
दिल है रोता

-सुदर्शन रत्नाकर


बाती -सी जली
हर दिन-रात को
हमारी माँ थी

डॉ सतीशराज पुष्करणा

माँ का आँचल
शीतल -सुरभित
मलयानिल!

नहीं समता
सभी गुणों से ऊँची
माँ की ममता

रिश्ता है खास
हो रहा अहसास
माँ मेरे पास

आज तलक
मुझे देता तारल्य
माँ का वात्सल्य

सर्जन-शोध
सार्थक कर देता
मातृत्व-बोध

मेरा सपना-
बच्चे न माने उसे
बोझ अपना

-डॉ मिथिलेश दीक्षित

कोई न ऐसा
लुटाये जो ममता
जग में माँ -सी।

जग में होता
रब से बढ़कर
माँ का आँचल।

धरती जैसा
रखती है धीरज
जग में माँ ही।

खिलखिलाये
मासूम -सा चेहरा
माँ को पाकर

सुभाष नीरव

होती नहीं माँ
हम-तुम न होते
सृष्टि न होती ।

माँ की दुआ से
पूरन हर काम
मेरा विश्वास ।

स्वर्ग है कहीं ?
माँ के ही चरणों में
ढूँढ़ो तो सही

माँ जो कलपे
सुख -समृद्धि जाए
लक्ष्मी न आए ।

रहेंगे ॠणी
कब चुका पाएँगे
माँ अनमोल ।

-रमा द्विवेदी

मेरा आँचल
जकड़के मुट्ठी में
सोई लाडली

गोद में बैठी
कहानी सुने परी
किसी परी की

जननी -प्राण
आँखों में बसी रहे
सोन-पुतली

रोड़ी कूटे माँ
सोया लाल छाँव में
भीगे आँचल

डॉ सुधा गुप्ता

दुखी हिरणी
खोजती है अपना
बिछुड़ा छौना ।

मैया पुकारे
आँगन में खेले हैं
नन्द दुलारे।

खुश बहुत
यशोदा मैया, जन्मा
कृष्ण कन्हैया।

सुबक पड़ी
माँ से विदाई की थी
निष्ठुर घड़ी।

माँ का आँचल
ममता का सागर
दुआ लहरें।

आई हिचकी
करती है माँ याद
बेटा विदेश।

माँ तो सदैव
करती रही त्याग
थकी ही नहीं।

भुलाता दुख
ममता का आँचल
देता है सुख।

रात भर थी
बैठी माँ सिरहाने
सोई ही नहीं।

डॉ भावना कुँअर

तेरा आशीष
माँ ! फलें -फूलें सदा
तू एक दुआ

छाया औ’ धूप
अनेक तेरे रूप
माँ तू अनूप

धरा -सी सहे
माँ की यही नियति
नदी -सी बहे

माँ का अस्तित्व
समग्र व्यक्तित्व ही
जिसमे डूबा

एक शब्द माँ

है माँ की परिभाषा
सम्पूर्ण भाषा

दिये-सी जले
मन ममता पले
माँ है उजाला

माँ करे प्यार
कितने हों प्रहार
माने न हार

जीते या हारे
सन्तान पर ही माँ
ख़ुद को वारे

पहली बार
बेटी गोद उठाई
माँ याद आई

माँ की वेदना
माँ बन जान पाई
माँ याद आई

रेखा रोहतगी

मन -आँगन
कलियाँ हैं खिलतीं
देती स्नेह माँ


फटे आँचल
झाँकते जो सपने,
दुलारती माँ


लगाती टीका
उतारी है नज़र
देती दुआ माँ


दुआ की धूप
घर के कोने -कोने
बिखराती माँ

पूजा के फूल
महकते हैं घर
होते ही भोर


खाँसती रही
छुपाती है मगर
सब दर्द माँ


जब बुलाया
हम न आये पास
गई दूर माँ


सूना है माथा
कौन लगाये टीका
दुआओं- भरा


है वो अभागा
न मिल सकी जिसे
माँ की ममता


माँ जो दुखी
आये आँखों में आँसू
रूठेगा हरि

ह्रदय दुखा
सुख पायेगा नहीं
रूठेगा रब


धूप भी छाँव ,
माँ के सामने शूल,
बनेंगे फूल


जीवन होता
करेले-सा कड़ुआ
शहद है माँ

सुकून देती
ठण्ड की गुनगुनी
वो धूप है माँ


दुःख की बेला
सुख के कोंपल -सी
खुश होती माँ


सदा पिसती
सिंदूर ममता के-
बीच, भोली माँ

-रचना श्रीवास्तव

माँ की ममता
तब समझ पाई
जब माँ बनी ।

-प्रियंका गुप्ता

सुख दुख ये
धूप और बदली
सूरज है माँ

आँखें धुंधली
जीवन आंधी पानी
छतरी है माँ

भूख प्यास
मिटाती पलपल
अन्नपूर्णा माँ

ऐसी सहेली
हर बात जानती
दूर कब माँ

आती है याद
पलपल ही माँ
सपने में आ


औझल हुई
ईश्वर के पास जा
दिखती नहीं

मन भीतर
लिखी एक दुआ सी
साथ मेरे माँ

-शैल अग्रवाल

करे उपाय
मेरे ग्रह -शांति के
हर वक़्त माँ


प्रभु की मूरत
माँ के रूप में पाई
धन्य हुई मैं

प्रथम गुरु
देती प्यार-संस्कार
कहें सब माँ

अमिता कौण्डल

ममता बाँटे
दिन -रात पीर की
फसलें काटे

जर्जर काया
सब कुछ लुटाया
कुछ न पाया

प्यारे थे बेटे
निकल गए हेटे
दूर जा बसे

सुधा बांट के
रिश्तों के शहर में
पीती ज़हर।

मां की याद
ज्यों मंदिर की जोत
जलती रहे।

-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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