हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?
जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?
खलक सब नाम अपने को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?
न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?
कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?
मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया।
पांच तत की बनी चुनरिया
सोरह सौ बैद लाग किया।
यह चुनरी मेरे मैके ते आयी
ससुरे में मनवा खोय दिया।
मल मल धोये दाग न छूटे
ग्यान का साबुन लाये पिया।
कहत कबीर दाग तब छुटि है
जब साहब अपनाय लिया।
अंखियां तो छाई परी
पंथ निहारि निहारि
जीहड़ियां छाला परया
नाम पुकारि पुकारि
बिरह कमन्डल कर लिये
बैरागी दो नैन
मांगे दरस मधुकरी
छकै रहै दिन रैन
सब रंग तांति रबाब तन
बिरह बजावै नित
और न कोइ सुनि सकै
कै सांई के चित
माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले
बोले मधुरे बानी।।
केसव के कमला वे बैठी
शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं
तीरथ में भई पानी।।
योगी के योगन वे बैठी
राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी
काहू के कौड़ी कानी।।
भगतन की भगतिन वे बैठी
बृह्मा के बृह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो
यह सब अकथ कहानी।।
सुपने में सांइ मिले
सोवत लिया लगाए
आंख न खोलूं डरपता
मत सपना है जाए
सांइ मेरा बहुत गुण
लिखे जो हृदय माहिं
पियूं न पाणी डरपता
मत वे धोय जाहिं
नैना भीतर आव तू
नैन झांप तोहे लेउं
न मैं देखूं और को
न तेही देखण देउं
नैना अंतर आव तू
ज्यौ हौं नैन झंपेउं
ना हौं देखूं और कूँ
ना तुम देखण देउं
कबीर रेख सिंदूर की
काजर दिया न जाइ
नैनू रमैया रमि रह्या
दूजा कहॉ समाइ
मन परतीत न प्रेम रस
ना इत तन में ढंग
क्या जानै उस पीवसू
कैसे रहसी रंग
मोको कहां ढूढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ मे ना मूरत में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किरिया करम में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तालास में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूं विश्वास में
अवधूता युगन युगन हम योगी
आवै ना जाय मिटै ना कबहूं
सबद अनाहत भोगी
सभी ठौर जमात हमरी
सब ही ठौर पर मेला
हम सब माय सब है हम माय
हम है बहुरी अकेला
हम ही सिद्ध समाधि हम ही
हम मौनी हम बोले
रूप सरूप अरूप दिखा के
हम ही हम तो खेलें
कहे कबीर जो सुनो भाई साधो
ना हीं न कोई इच्छा
अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं
खेलूं सहज स्वेच्छा
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
चंदन काठ के बनल खटोला
तापर दुलहिन सूतल हो
उठो सखी री मांग संवारौ
दुलहा मोसे रूठल हो
आये जमंराजा पलंग चढि बैठा
नैनन अंसुवां टूटल हो
चार जने मिल खाट उठाइन
चहुं दिसि धूं धूं उठल हो
कहत कबीर सुनो भाई साधो
जगसे नाता छूटल हो
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
ज्यों तिल मांहि तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा सांई तुझ में ही है, जाग सके तो जाग।।
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे बन मांहि।
ऐसे घटघट पीव हैं, दुनिया जानत नांहि।।
कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय।
भक्ति करे कोई सूरमा, जाति बरन कुल खोय।।
जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकास।
जो है जा की भावना, सो ताहि के पास।।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। प्रेम गली अति सांकरी, यामें दो न समाहिं।।
जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ वहाँ पाप।
जहाँ क्रोध तहां काल है, जहाँ क्षमा वहाँ आप।।
पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
घर की चाकी का बुरी, पीस खाय संसार।।
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय।।
माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुखमांहि।
मनवा तो चहुंदिसि फिरै, यह तो सिमरन नाहिं।।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
कांकर पाथर जोरकर मसज़िद लिया बनाय।
ता चढ़ मुल्ला बांग दे, बहरा हुआ खुदाय।।
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा होएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा कब मरी, कह गए दास कबीर ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
बडा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही, फल लागे अति दूर ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कौड़ी बदले जाय ॥
जो तोको काँटा बुवै, ताहि बोव तू फूल।
तो को फूल को फूल है, वाको है तिरसुल॥
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पांव।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दीन्ह मिलाय।।
चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए, वही शहनशाह॥
साधो ये मुरदों का गांव
पीर मरे पैगम्बर मरिहैं
मरि हैं जिन्दा जोगी
राजा मरिहैं परजा मरिहै
मरिहैं बैद और रोगी
चंदा मरिहै सूरज मरिहै
मरिहैं धरणि आकासा
चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं
इन्हूं की का आसा
नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं
मरि हैं सहज अठ्ठासी
तैंतीस कोट देवता मरि हैं
बड़ी काल की बाजी
नाम अनाम अनंत रहत है
दूजा तत्व न होइ
कहत कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो ना कोइ।.