माह विशेषः हरिवंश राय बच्चन


बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर…
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच
कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है…
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि
एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.

एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ..
मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ!

यहाँ सब कुछ बिकता हैं, दोस्तों रहना जरा सँभाल के
बेचने वाले हवा भी बेच देते हैं, गुब्बारों मे डाल के !
सच बिकता हैं, झूठ बिकता हैं, बिकती है हर कहानी…
तीन लोक मे फैला हैं, फिर भी बिकता है बोतल मे पानी !
कभी फूलों की तरह मत जीना,
जिस दिन खिलोगे … टूट कर बिखर जाओगे !
जीना है तो पत्थर की तरह जियो ,
जिस दिन तराशे गये… ‘खुदा’ बन जाओगे !

आँसुओं को बहुत समझाया तनहाई में आया करो,
महफिल में आकर मेरा मजाक न बनाया करो !
आंसू बोले…
इतने लोगों के बीच भी आपको तनहा पाता हूँ
बस इसलिए साथ निभाने चला आता हूँ !

जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया
हम सिख न पाए फरेब और दिल बच्चा ही रह गया !

बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे, जहां चाहा रो लेते थे…
पर अब मुस्कान को तमीज चाहिए और रोने को तन्हाई !

हम भी मुस्काते थे कभी बेपरवाह अन्दाज से
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्बीरों में !

चलो मुस्कुराने की वजह ढुँढते हैं…
तुम हमें ढुंढो…हम तुम्हें ढुंढते हैं! !

-हरिवंश राय बच्चन

भावों के कोमल और सरस चितेरे हरिवंश राय बच्चन जी जन-जन के कवि हैं और आज भी नीरज की तरह ही बेहद लोकप्रिय भी।

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