‘माओरी और पाकेहा संस्कृतियों का संगम -न्यूज़ीलैंडः दीप्ति गुप्ता

सितम्बर माह में अपनी न्यूजीलैंड यात्रा के दौरान, मैं बड़े खूबसूरत अनुभवों से गुज़री जिनमें से एक था, यहाँ की मिश्रित – माओरी (पोलिनेशियन) और पाकेहा (यूरोपियन) सभ्यता में रचे-बसे ‘न्यूजीलैंड’ के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थानों के दर्शन और उनसे जुडी घटनाओं और गाथाओं एवं इसके भौगोलिक रूपाकार और उत्पति के बारे में जानना ! किसी देश को, उसके इतिहास एवं उसकी सभ्यता के झरोखे से झाँक कर देखने पर उसे निश्चित ही बेहतर समझा जा सकता है ! दूर बैठ कर उसके बारे में पढ़ पर उतनी स्पष्ट और सम्पूर्ण जानकारी नही मिल पाती है – जितना कि उस स्थान को नज़दीक से देखकर, वहाँ के खान-पान, रहन-सहन और निवासियों के बीच रह कर मिलती है ! अगर कहूँ कि न्यूजीलैंड अपने में एक अनूठा खूबसूरत देश है, तो अत्युक्ति न होगी ! एक लम्बायमान आकृति लिए यह छोटा सा देश प्रशांत महासागर में कभी एक अलग-थलग अकेला सा, अविकसित द्वीप हुआ करता था ! न्यूजीलैंड में मानव-बस्ती और क्रमश: उसकी सभ्यता का इतिहास – मूलत: ‘माओरी’ सभ्यता और तदनन्तर ‘पाकेहा’ सभ्यता के क्रमिक विकास की गाथा है !

‘भौगोलिक दृष्टि से यदि न्यूजीलैंड का अवलोकन करे, तो यह दो प्रमुख द्वीपों – उतरी द्वीप और दक्षिणी द्वीप व अन्य छोटे-छोटे कई द्वीपों से मिलकर बना है ! यह दक्षिणी प्रशान्त महासागर के ‘ओशिनिया’ जल क्षेत्र में स्थित है ! इसके उत्तर-पश्चिम में ऑस्ट्रेलिया तथा उत्तर में टोंगा और फिजी द्वीप समूह हैं ! इसके चारों ओर फैला हुआ समुद्र इसे बहुत रमणीय बनाता है ! यह जल-भाग आर्थिक दृष्टि से विश्व में पाँचवा विशालतम दुधारू क्षेत्र है ! यह न्यूजीलैंड के थल भाग से पन्द्रह गुना बड़ा है ! न्यूजीलैंड के उत्तरी द्वीप की अपेक्षा, दक्षिणी द्वीप में बड़े पैमाने पर भूमि है, जिसमे जनसंख्या का तीन चौथाई हिस्सा बसा हुआ है! ! यह दक्षिणी एल्प्स पर्वत माला से लम्बाई में विभाजित है ! दक्षिणी द्वीप में तीन हज़ार मीटर तक फैली एल्प्स पर्वत श्रेणी में अठ्ठारह ऊँची- ऊँची चोटियाँ है, जिनमे सबसे ऊँची चोटियों का नाम है – ‘आरोकी और माउन्ट कुक’ तथा उत्तरी द्वीप में सबसे ऊँची चोटी है – माउन्ट रूपेहू (Mt. Ruapehu ) ! उत्तरी द्वीप में दक्षिण द्वीप की अपेक्षा पहाड कम हैं और इस क्षेत्र के ‘ज्वालामुखी’ इसकी पहचान से ! इसकी स्थलाकृति (Topography) प्रशान्त महासागर और इन्डो-आस्ट्रेलियन टेक्टोनिक प्लेट यानी विस्तार के बीच में दोनों ओर अपनी सीमाएं लिए हुए है ! ‘न्यूजीलैड’ उस ‘जिलेंडिया महाद्वीप’ का सबसे बड़ा शेष भाग है, जो सदियों पहले प्राकृतिक एवं भौगोलिक कारणों से, आस्ट्रेलिया से टूटकर अलग हुआ प्रशान्त महासागर में डूब गया था ! आज जिलेंडिया महाद्वीप’ का 10 % भाग ही समुद्र तल के ऊपर बचा है ! कहा जाता है कि ‘जिलेंडिया महाद्वीप’ – ग्रीनलैंड और भारत से आकार और क्षेत्रफल में बड़ा था !

आज यहाँ पर माओरी के नाम से पहचान बनाने वाले लोग मूलत: ‘पोलिनेशिया’ से थे, जो ‘ओशिनिया’ का ‘उपक्षेत्र’ है, जिसके अन्तर्गत प्रशान्त महासागर के मध्य और दक्षिण भाग में बिखरे एक हज़ार द्वीप आते हैं ! इन द्वीपों के स्थानीय निवासी ‘पोलिनेशियन’ कहलाते हैं, जिनकी भाषा, रहन-सहन, मान्यताएं एक समान हैं ! इतिहास के अनुसार वे कुशल और अनुभवी मल्लाह थे, जो समुद्री लहरों, हवाओं और तारों के सहारे अनुमान लगाते हुए यात्राएं किया करते थे ! यह शब्द ‘पोलिनेशिया’ सबसे पहले सन् 1756 में फ्रेंच लेखक ‘चार्ल्स दी ब्रौसेस’ के द्वारा प्रयुक्त किया गया था ! पहले यह प्रशान्त महासागर के सभी द्वीपों के लिए प्रयोग किया जाता था ! किन्तु कहा जाता है कि सन् 1831 में Jules Dumount d’Urville ने सब द्वीपों के लिए इस शब्द के प्रयोग पर आपत्ति की और तब से पोलिनेशिया विशेष रूप से प्रशान्त महासागर के दक्षिण भाग के द्वीपों के लिए प्रयोग में आने लगा !

सदियों पूर्व, उपेक्षित और एकाकी पड़े ‘न्यूजीलैंड’ को क्रमश: जीवन का स्पंदन देने वाले पोलोनिशियन लोग समुद्री रास्ते से न्यूजीलैंड आए और न्यूजीलैंड में बसने के बाद अपनी पोलोनिशियन जड़ो से कट जाने पर, ये ‘माओरी’ के नाम से जाने गए ! इस प्रकार न्यूजीलैंड में मानव जाति का आगमन पहले-पहल पूर्वी पोलेनिशीया की ओर से हुआ था ! यद्यपि आज तक, प्राकृतिक सम्पदा से भरे इस छोटे से देश ‘न्यूजीलैंड’ में माओरी जाति के आगमन की सही तिथि के बारे में निश्चित कुछ नहीं कहा जा सका है, फिर भी, इतिहासकारों का अनुमान है कि वे 1250-1300 ई. के लगभग यहाँ पहुँचे और उन्होंने धीरे धीरे इसे बसाना शुरू किया ! इस जाति द्वारा धीरे–धीरे जिस सभ्यता-संस्कृति का विकास हुआ, वह भी इन्ही के नाम पर ‘माओरी सभ्यता ‘ के नाम से जानी गई ! ‘माओरी’ का अर्थ है -‘साधारण या सामान्य’!

पोलिनेशियन लोगो के यहाँ बस जाने के लम्बे समय बाद तक भी योरोपियन लोग न्यूजीलैंड के अस्तित्व से अनभिज्ञ थे ! 1642 ई. में एबल टैज़मन (Abel Tasman) नामक एक डच व्यक्ति, पहला योरोपियन था, जो द्वीपों की खोज करता हुआ न्यूजीलैंड पहुँचा ! एबल टैज़मन ने जब पहले-पहल न्यूजीलैंड को देखा तो, उसने इसे दक्षिणी अमेरिका का हिस्सा समझा और इसे ‘Staten Landt’ नाम दिया ! लेकिन 1645 में डच मानचित्रकार Joan Blaeu ने इसे एक डच प्रान्त ‘ज़ीलैण्ड’ के नाम पर ‘नोवा जिलेंडिया’ कहा ! इसके उपरान्त, एबल टैज़मन के 127 वर्ष बाद, 1769 में ‘जेम्स कुक’ नामक ब्रिटिश अन्वेषक न्यूजीलैंड पहुँचा ! उसने गम्भीरता से न्यूजीलैंड के उत्तरी और दक्षिणी, दोनों द्वीपों की भौगोलिक और माओरी जाति द्वारा विकसित सभ्यता और सामाजिक व सांस्कृतिक परिस्थितयों का अध्ययन किया तथा इस सारी जानकारी के साथ ब्रिटेन लौटा ! साथ ही उसने ही ‘नोवा जिलेंडिया’ को अंग्रेज़ी का स्पर्श देते हुए ‘न्यूजीलैंड’ नाम दिया ! इसके अलावा, Aotearoa यानी न्यूजीलैंड, यहाँ की मूल जाति माओरी लोगों द्वारा दिया हुआ, इसका ‘माओरी भाषा’ का नाम है जिसका मतलब है – ‘लम्बे श्वेत बादलो की धरती’ (Land of long white clouds) !

वस्तुत: यह निर्विवाद है कि पोलेनिशीयनवासियों ने खोज की जिज्ञासा से की जाने वाली समुद्री यात्राओं के तहत इस छोटे से देश को अपनी एक पहचान दी ! ! पहले पोलेनिशिया के कुछ लोगों का समूह न्यूजीलैंड पहुँचा था और बाद में वे काफी संख्या में वहाँ बसते गए ! वे शिकारी जत्थों के रूप में रहा करते थे और मोआ पक्षी व सील मछलियां इनका मुख्य शिकार होती थी ! मोआ पक्षी का इन्होने इस हद तक शिकार किया कि उनकी प्रजाति ही खत्म हो गई ! पशु-पक्षियों का शिकार करना, उन्हें भोजन के रूप में एकत्र करना, ‘माओरी जाति’ के जीने का आधार था और समूह बनाकर साथ-साथ रहना सीधी सादी रहन-सहन की शैली थी!

माओरी पोलिनीशिया द्वीपों से शुरुआत में अपने साथ दो तरह की पैदावार न्यूजीलैंड लेकर आए थे – कुमरा (शकरकंदी, मीठा आलू) और रतालू (जिमीकंद), जिसकी पैदावार न्यूजीलैंड के उत्तरी द्वीप की अपेक्षाकृत गर्म जलवायु में बहुत बढ़िया होती थी ! बड़े-बड़े कुमरा खेत और बगीचे माऊरियों के बसने का बहुत अधिक सहारा बने ! इस उत्तरी इलाके में कुमरा व रतालू (जिमीकंद) के अलावा पक्षी, मछलियाँ और सीपदार मछली (shellfish ) भी माऊरी लोगो के मुख्य भोजन में शामिल थी ! इस द्वीप पर आकर एक नई धरती से जुड जाने पर, बीतते समय के साथ अपनी पोलिनेशियन जड़ो से दूर हो कर,एक भिन्न जाति के रूप में स्थापित होने पर, माऊरियों ने न्यूजीलैंड की धरती पर उजाड़ पड़े गाँवों को बसाया ! वे शिकार करते और मछलियाँ पकडते, कुछ ज़रूरत की चीजों का समुद्री मार्ग से व्यापार करते ! फिर शनैः-शनैः उन्होंने यहाँ खेती-बाड़ी का विकास किया, अपनी ज़रूरत के अनुसार हथियार बनाने शुरू किए, माओरी लोक-कला को जन्म दिया ! माओरी सभ्यता की प्रमुख उपलब्धि थी – प्रमुख इमारतों और डोंगियों (नौकाओं) के लिए लकडी पे नक्काशी का काम तथा हथियारों और गहनों में सुन्दर-सुन्दर पत्थरों को जडना, उन्हें तरह-तरह से सजाना !

धीरे-धीरे माऊरियों ने खान-पान और रहन-सहन के अन्य नए स्रोतों पे भी सोचना और ध्यान देना शुरू किया ! अनुकूल जलवायु के कारण माऊरियों को इस नए द्वीप में रहना रास आ गया ! उनसे अधिक आधुनिक और उनके बाद आने वाले योरोपियन लोगों की तुलना में जीने के लिए माऊरियों की ज़रूरते और मांगे कम थी ! शिक्षा के अभाव में, माऊरियों ने अपने सम्पन्न और विस्तृत इतिहास को पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से सुरक्षित रखा ! ‘व्हाकापापा’ (Whakapapa) यानी अपनी जाति और वंशावली की बातों को वे अक्सर लयबद्धता के साथ गाते और अपनी नई पीढ़ी को उसकी महत्वपूर्ण जानकारी देते थे ! वे नई धरती पर छोटे-छोटे समूह में इधर-उधर रहते हुए भी संगठित बने रहते थे और अपने पूर्वजों की समैक्यता के कारण वंशजों को खोजने और पहचानने की गहरी दृष्टि रखते थे !
अस्तित्व (mana) और प्रतिक्रियात्मकता (utu) यानी किसी दूसरे के अच्छे और बुरे व्यवहार के प्रति सजगता से अपनी समझ और क्षमता के अनुसार आन्दोलित होना, सामना करना – ये दो प्रवृत्तियाँ माओरी संस्कृति के मूल में थी ! अपनी सुरक्षा को लेकर उपजने वाली इस भावना ने छोटे-छोटे झगडों से लेकर बड़े युद्धों को जन्म दिया ! योरोपियन लोगों के आगमन से, माओरी अधिकतर सुरक्षित गाँवों में अमन- चैन से रहने के बजाय, असुरक्षा के वातारण में जगह-जगह अस्थाई कैम्पों में रहने को विवश थे ! फिर भी, जब तब भड़क उठने वाले झगड़े और युद्ध, कभी भी खाद्य सामग्री व अन्य चीजों के आयात और निर्यात में बाधक नहीं बने !
माओरियों के आने के लगभग 200 -250 वर्ष बाद ब्रिटिश लोग यहाँ गति से आये और बढ़ते गए ! माओरी लोगों की तरह ही, सुदूर योरोप (ग्रेट-ब्रिटेन) से न्यूजीलैंड में बसने वाले योरोपियन लोग ‘पाकेहा’ कहलाये ! अपनी जड़ो से दूर होने के बावजूद भी, ‘यूरोपियन न्यूजीलैंडवासियों’ ने, ‘मदर इंग्लैण्ड’ से अपने सांस्कृतिक जुडाव और नाल-बंधन को यूँ तो हमेशा बनाए रखा, किन्तु यह प्रगाढ़ नाल-बन्धन अन्तत: ब्रिटिश साम्राज्य के पराभव और विशेषरूप से ब्रिटिश मांसाहारी व दुग्ध खाद्य सामग्री तक पहुँच खत्म हो जाने की वजह से टूटता गया ! फलस्वरूप ‘पाकेहा’ लोगो ने अपनी आरम्भिक ब्रिटिश सभ्यता-संस्कृति, न्यूजीलैंड में बिखरे छोटे-छोटे गाँवों की ग्रामीण जीवन शैली और यहाँ के अनोखे वतावरण से प्रभावित, एक मिश्रित संस्कृति ‘पाकेहा’ को विकसित किया ! माओरी और पाकेहा लोगों में ज़मीन को लेकर होने वाले युद्धों में अधिकतर पकेहा लोगों की ही जीत होने के कारण, ‘पाकेहा सभ्यता-संस्कृति’ न्यूजीलैंड में छाने लगी और जल्द ही सब जगह व्याप्त हो गई !

यूरोपियन लोगो के सम्पर्क में आने पर, इन कोलोनियल उपनिवेशियों की अंग्रेज़ी भाषा, तकनीक और ईसाई धर्म का माओरी जाति पर जादुई असर हुआ ! किन्तु चतुर अंग्रेजों ने सरल स्वभाव, सीधे-सादे माओरियों पर जिस तरह अपना अधिकार जमाना शुरू किया और उन्हें तरह-तरह से परेशान किया, उससे माओरियों का जीवन दूभर हो गया ! तब शान्ति से जीवन यापन करने की भावना से, माओरी और पाकेहा लोगों के बीच 1840 में एक संधि हुई , जो साथ ‘वेटांगी-संधि’ के नाम से जानी जाती है ! इसका परिणाम यह हुआ कि माओरी और कोलोनियल लोग आपस में शान्ति से रहने लगे ! लेकिन कुछ समय बाद संधि पत्र के नियमों और शर्तों को अंग्रेजों द्वारा अनदेखा किया जाने लगा और फलस्वरूप 1845 में न्यूजीलैंड की शान्त-सुरम्य धरती पर युद्ध के बादल गरज उठे ! जिसके परिणामस्वरूप भोले-भाले माओरी लोग अपनी ज़मीने, खेती-बाडी और अपनी ‘पहचान’ खोने लगे ! जिसका परिणाम यह हुआ कि आने वाले समय में वे हाशिए पर चले गए और ‘अल्पसंख्यक’ जाति बन कर रह गए ! इतना नुकसान और तहस-नहस झेल कर, इतनी चोट खाने के बावजूद भी, धूमिल होती हुई माओरी सभ्यता और संस्कृति ने कुछ सदी पूर्व से अपने अस्तित्व को फिर से हासिल करना शुरू किया और न्यूजीलैंड में दूर -दूर तक पसरी हुई योरोपियन सभ्यता के बीच अपनी ठोस जगह बनाई !

निरन्तर किए जाने वाले राजनीतिक प्रयासों, द्विसंस्कृतिवाद तथा ‘वेटांगी-संधि’ के कारण बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में – सदियों पुराने माओरी और पाकेहा जातियों का उद्भव और विकास, उनके द्वारा उपजी राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक, गतिविधियां न्यूजीलैंड में स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनी, जिससे माओरी और पाकेहा के मध्य सद्भाव बढ़ा !
न्यूजीलैंड में पहला योरोपियन जनसंख्या बहुल शहर ‘ कोरोरारेका ‘ विकसित हुआ, जब व्हेल मछली के व्यापारी लोगो की समुद्री मार्ग से यहाँ के समुद्री तट Bay of Island पर भोजन और पानी के लिए आवाजाही शुरू हुई थी !
1790 ई. में माओरीयों ने ‘पोर्क और आलुओं’ का उत्पादन, व्यापार की दृष्टि से शुरू किया ! माओरी और योरोपियन लोगो के बीच व्यापार के अलावा पारस्परिक सम्पर्क का जो अन्य माध्यम और जरिया था, वह था – Foveaux Strait sealing grounds ! दक्षिणी न्यूजीलैंड और Stewart Island (न्यूजीलैंड का दक्षिण की ओर तीसरा बड़ा द्वीप) के मध्य का जलभाग Foveaux Strait है ! इसी तरह Bass Strait न्यूजीलैंड के निकट आस्ट्रेलिया और तस्मानिया द्वीप के बीच एक ‘जलडमरूमध्य’ है ! इन जगहों पर माओरी और पाकेहा सील मछली का शिकार करते क्योंकि वह मात्र भोजन के रूप में ही नही, अपितु उसकी खाल जूते बनाने के काम आती और फर हैट आदि में लगाये जाते थे ! इसके अलावा सील का तेल रात में उजाले के लिए जलाने के काम आता ! अत: अर्थोपार्जन की दृष्टि से ये लोग सील मछली पकडते, एकत्र करते और उसका व्यापार करते थे ! आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दक्षिणी भागों में यह व्यापार बहुतायत से चलता था !
योरोपियन व्यापारियों के आने से माओरी लोग कुछ खास स्थानों की ओर खिंचे और उन्होंने योरोपियन रहन-सहन भी थोड़ा-थोड़ा अपनाया जिससे इस जनजाति को यह लाभ हुआ कि इन्हें अपनी चीजों से हट के, योरोपियन सामग्री प्राप्त हुई – खासतौर से ‘बारूदी हथियार’ !
1814 ई. के आसपास सिडनी के लोगो द्वारा यहाँ ईसाई मिशन केन्द्र Bay of Islands में स्थापित किया गया और 1840 तक इस तरह के बीस केन्द्र स्थापित हो गए ! ईसाई प्रचारकों के सम्पर्क में आने से माओरियों ने इस धर्म को जाना और उन लोगों से पढ़ना-लिखना, खेती-बाड़ी और व्यापार की नई तकनीक भी सीखी ! इससे पहले, 1830 में न्यूजीलैंड आने वाले फ्रेंच मिशनरियों ने माओरियों को कैथोलिक धर्म से भी परिचित कराया था, तथा उन्हें अपने धर्म में दीक्षित करना चाहा, लेकिन माओरियों की ईसाई बनने की गति धीमी रही !
कुछ समय बाद जब ब्रिटिश सरकार ने न्यूजीलैंड में अपने व्यापारियों को अधिक सुरक्षा प्रदान करने और कानूनी अनुशासनहीनता को खत्म करने के लिए कदम उठाया, तो उन्होंने फ्रेंच व्यापारियों की सामग्री की खरीद-फरोख्त पर पाबन्दी लगाकर, उन्हें रोकने की राजनीति शुरू की ! जबकि सिडनी के ईसाई धर्म प्रचारक माऊरियों को योरोपियन लोगों के बसने से उपजे प्रभावों से बचाना चाहते थे !
हालाँकि न्यूजीलैंड की राजधानी ‘वेलिंग्टन’ है लेकिन सबसे अधिक जनसंख्या वाला और सांस्कृतिक रूप से संपन्न शहर ‘ऑकलैंड’ हैं जिसकी जनसंख्या लगभग 1.42 मिलियन है ! आज समूचे न्यूजीलैंड की जनसंख्या का बड़ा भाग (लगभग 4.5 मिलियन) योरोपियन वंशजो का हैं ! पोलिनेशियन प्रवासी ‘माओरी’ और उनके बाद आए ब्रिटिश प्रवासियों ‘पाकेहा’ द्वारा विकसित की गई, न्यूजीलैंड की सभ्यता और संस्कृति मे अब एक नवीन स्पर्श देखने को मिलता है, खासतौर से, जब से अन्य देशों – फ़्रांस, जर्मनी, भारत, यूनाइटेड स्टेट्स, चीन, कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, समोआ और टोंगा द्वीपों के लोगों ने यहाँ आकर बसना शुरू किया ! भूमंडलीकरण के कारण इन लोगो के आगमन से न्यूजीलैंड में बहुरंगी सभ्यता-संस्कृति का अद्भुत विकास और विस्तार हुआ और पहले से अधिक चहल-पहल बढ़ी ! ‘ऑकलैंड’ में पोलिनेशियन जनसंख्या की अधिकता के कारण ‘ऑकलैंड’ विश्व का सबसे ‘विशाल पोलिनेशियन शहर’ माना जाता है ! फिर भी, ऑकलैंड से बाहर के क्षेत्रों में बसी आबादी में विजातीयता कम हैं ! जैसे कि दक्षिण न्यूजीलैंड के अधिकांश भागों में योरोपियन यानी पकेहा लोगो के वंशज अधिक संख्या में बसे हुए हैं !
भाषा किसी भी देश की सभ्यता एवं संस्कृति का अहम हिस्सा होती है, इसलिए उसके बारे में जानना बहुत ज़रूरी होता है ! न्यूजीलैंड की यूं तो तीन आधिकारिक भाषाएँ – अंग्रेज़ी, माओरी और ‘न्यूजीलैंड की संकेत भाषा’ – Māori: Te Reo Rotarota हैं, जो 2006 से मूक और बधिर लोगों की मुख्य भाषा है, लेकिन बोलबाला अंग्रेज़ी का ही है ! देश की अर्थ व्यवस्था ऊन, दुग्ध निर्मित खाद्यों, मांस, और शराब के निर्यात तथा टूरिज्म पर केंद्रित है !
न्यूजीलैंड में दो प्रख्यात राष्ट्रीय दिवस मनाये जाते हैं – ‘वेटांगी-दिवस’ (Waitangi Day) और “ऐंजाक दिवस”(ANZAC Day – Australian and New Zealand Army Corps) ! प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान न्यूजीलैंडवासियों ने इंगलैंड का साथ देते हुए, वफादारी से अपना सहयोग दिया और जान हथेली पे रख के युद्ध लड़े ! इन युद्धों में हजारो न्यूजीलैंडवासी मारे गए ! न्यूजीलैंड की सेनाएं पश्चिमी सीमा पर भी बहादुरी से लड़ी और जान न्यौछावर की ! उन शहीदों की याद में और आस्ट्रेलिया के साथ न्यूजीलैंड के अच्छे सम्बन्धों के प्रतीक रूप में ही, तब से ANZAC दिवस मनाया जाता है ! इन दो दिनों में सभी सरकारी व प्राइवेट कार्यालय और स्कूल, कॉलिज आदि बंद रहते है ! न्यूजीलैंड के समान महत्त्व वाले दो राष्ट्रीयगान है – God save the Queen और God Defend New Zealand. ! इनमें बाद वाला गीत – माओरी और अंग्रेज़ी – दोनों भाषाओँ में गाया जाता है ! यहाँ के शान्तिप्रिय निवासी ‘माओरी और पाकेहा जाति’ से जुड़े भेदभाव को खत्म करने की सदभावना से स्वयं को ‘न्यूजीलैंडवासी’ या ‘कीवी’ (Kiwi) कहलाना श्रेयस्कर मानते हैं !
इस प्रकार पोलिनेशियन से ‘माओरी’ बने और योरोपियन से ‘पाकेहा’ बने, इन न्यूजीलैंडवासियों की ‘माओरी और पाकेहा सभ्यता व संस्कृति’ विश्व मे, इस खूबसूरत देश की एक अलग ही पहचान स्थापित करती हैं ! संभवत: अपने मूल सादगी भरे स्वभाव और सदियों तक विश्व के अन्य देशों से ‘कम’ सम्पर्क में रहने के कारण इन लोगों में अन्य देशों की तुलना में छल-कपट, बेईमानी, ईर्ष्या द्वेष नहीं के बराबर है ! शायद यही कारण है कि न्यूजीलैंड विश्व में अपनी साफ-सुथरी छवि और भ्रष्टाचार रहित देश के रूप में जाना जाता है ! जब भी विश्व के देशों में पसरे और दिनों-दिन बढते ‘भ्रष्टाचार’ का सर्वेक्षण होता है और सूची बनती है कि किस देश में सबसे अधिक और किस देश में कम भ्रष्टाचार है या है ही नहीं – तो न्यूजीलैंड का नाम ‘भ्रष्टाचार रहित’ देशों की सूची में सबसे ऊपर होता है !
माओरी जाति के संस्कार और मूल्यों का एक नमूना मुझे तब देखने को मिला, जब एक दिन मैं कार से घूमने के बजाय, वहाँ की सुन्दर, चमचमाती सिटी बस में यात्रा करने की चाह से, बेटी के साथ सेंट्रल सिटी गई ! बेटी का तो बस ‘पास’ बना हुआ था, सो उसने जब बस ड्राइवर से कहा कि -‘मेरी माँ है, इनका कितना टिकिट लगेगा, तो माओरी ड्राइवर ने शायद ‘माँ ‘ शब्द के सम्मान में या न जाने किस वजह से बड़ी शालीनता से, टिकिट लेने के लिए मना कर दिया और मैं व मेरी बेटी कलयुग में उस सरल- सीधे ड्राइवर की उदारता से निशब्द हुए सीट पर बैठ गए ! जबकि एक जगह दूसरी बस बदली तो, उसका ड्राइवर भारतीय था, उसने प्रोफैशनल अंदाज़ में मेरे टिकिट के झट तीन डॉलर लिए ! तब मेरी बेटी ने बताया कि यहाँ जितने भी माओरी लोग है वे बहुत नेक, सरल स्वभाव और उदार दिल वाले हैं ! छोटे-मोटे भलाई के काम करना उनके लिए आम बात है !
यहाँ सालो-साल अप्रिय घटनाएँ देखने और सुनने में नहीं आती ! किसी परिचित ने बताया था कि एक बार किसी के घर में एक छोटी सी चीज़ की चोरी हो गई थी, तो एक-दो महीने तक वह नगण्य चोरी की घटना लगातार वहाँ के अखबारों की सुर्ख़ियों में रही थी, सबके लिए एक अजूबा और चर्चा का विषय बनी रही थी ! चोर भी अनाड़ी और नौसिखिया रहा होगा या उसके मूल्य उस पर हावी रहे होंगे कि गरीबी या किसी अन्य कारण से चोरी करने तो निकला, लेकिन एक छोटी सी चीज़ के अलावा उससे कुछ चुराया ही नहीं गया और वह धडकते दिल से किसी तरह जान बचाकर भाग खड़ा हुआ ! तो ऐसा है यह माओरी और पाकेहा लोगों का सलोना और प्यारा देश, जो इसके निवासियों में नही, अपितु यहाँ के कण-कण में बसी अपनी निश्छलता और भोलेपन से पर्यटकों का दिल सहज ही मोह लेता है !

दीप्ति गुप्ता,
पुणे, महाराष्ट्र

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