ए चिरई काहें एतना गुमान करेलू
भूलि के दुनिया तू नभ में उड़ान भरेलू
ए चिरई काहें एतना गुमान करेलू
केतनो ऊपरी तूं उड़बू आवे के परी नीचे
मोह-माया के डोरी तोहरा के नीचे खींचे
क्षणिक सुख पे तूं सीना उतान करेलू
ए चिरई काहे एतना गुमान करेलू
चार दिन के जिनगी में केकर कवन ठेकाना बा
सबसे प्यार से बोलि बतियाल के आपन बेगाना बा
हइ सोना जइसन देहियां एक दिन बनि जाई लसिया
बात कहें सांचे सुनील चौरसिया
तोहरे देहियां में सगरी संसार बसेला
तोहार इतराइल देखिके संसार हंसेला
मोह में अनमोल जिनगी जियान करेलू
ए चिरई काहें एतना गुमान करेलू
जबले चले सांस तबले सबके हित में जील..
मस्ती के रस बरसव मस्ती के रस पील ..
एक दिन त रुकि जइबे करी, हई आवत जात संसिया
बात कहें सांचे सुनील चौरसिया
बगइचा में लगि जाला जब मीठ फल
रस चूसि सावन कुहुकेलु हर पल
हरि के भूलि भ्रम के रसपान करेलू
ए चिरई काहें एतना गुमान करेलू
– सुनील चौरसिया ‘सावन’
9044974084
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सरबतिया
अम्मा रे अम्मा
बाबू हो बाबू
दादी का चिट्ठी आइल है। गऊवां बोलावत हइन। कहत हइन घर दुआर सूना पडल बा । केहू त आ जा , बचवा ! तू ही आ जा। चाहे दुलहिन क औ बचवन के साथ भेज द।
हम एकदम अकेल हो गइल हई।
केहू नाहिंन ह। इतना बड़ खेतवा , अऊर हाता ले के हम का करिब ?
मरब त चारे हाथ क मट्टी चाहि ना ।
अमवा झरत ह, खेतवा क कुल मटर झुरा गइल ह , केहू पानी देवे वाला ना हऊवै । हम हूं कहिं अइसे ही न मर जाईं।
हमरा से चलत नाहिं बनत।
दुलहिन और बचवन क इहां भेज द।
बडा़ मनवा घबरात हौ।
रतिया क निदियों नाहिं आवत।
टुकुर-टुकुर छाजन के निहारि ला।
अखियां पीराला । कुच्छो सुझाई नाहिं देत।
कलिहां बड़ा जोर के आंधि आइल रहल, हम हड़बड़ा क उठलि ,तो भूईयां पे गीर गईलिं।
फीर केहू तरह से उठलिं त अन्हारि में टो-टो के दुआरी पे अइलिं।
निमवा क पेड़वा गीर गइल ह, खपरैला कूल गीर गइल ह।
हमार कोठरी से असमनवा देखात रहल।
का करित ? कहां जाईंत ?
के के बोलाइत ?
टूटले छाजन के निचे बईठल रह गईलिं रतिया भर।
केहू नाहिं आईल।
जब अंजोर भइल,तब गोसाईं,रामदिनवा, बब्बन अइलन , त उ सबे हमके निकललन ।
आ जा बचवा । एक बेर सब के देखे क जी करत बा ।
का जानि —- ? कल अंजोर होई कि ना ? हम उठब क नाहिं…
तोहार अम्मा
सरबतिया
डॉ.संगीता श्रीवास्तव
सचिव
महापंडित राहुल सांकृत्यायन
शोध एवं अध्ययन केंद्र संस्था, वाराणसी।
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