कितनी खूबसूरत है अपनी दुनिया!
पर सागर नाराज़ था पर्वतों से – तुम ऊपर ही क्यों उठते जाते हो, मेरी सतह में उथल-पुथल मच जाती है?
और पर्वत नाराज़ थे बादलों से – तुम इतना क्यों बरसते हो, मेरे पत्थर लुढ़कने लग जाते हैं, मिट्टी बह जाती है?
बादल नाराज़ थे पवन से- तुम हमें इतना दौड़ाते क्यों रहते हो, मैं दौड़ते-दौड़ते रीता हो जाता हूँ?
पवन नाराज़ था ईश्वर से – तुम मुझे एक जगह किसी के पास ठहरने क्यों नहीं देते, कितनी खूबसूरत है यह दुनिया , मैं कभी मनमाफिक बगिया में ढहर तक नहीं पाता?
सभी को मैं और मेरी की ही फ़िक्र थी, दुख था। दूसरों की तरफ उनकी दृष्टि जाती भी तो बस शिकायत से।
ईश्वर हँस पड़ा अपने बच्चों की नादानी पर। तुरंत सबको गोदी में समेटकर बोला- शांत मेरे बच्चों, शांत। तुम सभी की अपनी-अपनी योग्यता हैं और उसी हिसाब और ज़िम्मेदारी से अपने-अपने काम भी। एक दूसरे के सहारे ही चलती है यह दुनिया और तभी खूबसूरत भी रह पाती है। फल-फूल रही है।
जरा सोचो, अगर पर्वत यूँ ऊपर न उठते तो सागर पाताल में न धँस जाते अपने ही जल भंडार के एकत्रित भार से। बादल पानी न बरसाते तो पर्वत तुम इतने ऊँचे होते चले जाते कि खड़ा रहना तक मुश्किल हो जाता, लुढ़क जाते कभी भी संतुलन खोकर। और बादल अगर पवन तुम्हें सैर न कराता तो तुम सागर तक कैसे पहुँचते, जल-क्रीडा तक कैसे कर पाते अपना रीता अस्तित्व वापस भरने को । और पवन अगर तुम बस अपनी बगिया में ही रम जाते तो सारी यह दुनिया जी तक नहीं पाती। तुम ही तो इस संसार की प्राण वायु, उन कीट-पतंगों की भी जिनके सहारे सुंदर बगिया फलती-फूलती है। पूरा खुश तो कोई नहीं। सभी को असंतोष है, क्योंकि सबको दूसरे की ज़िन्दगी से ईर्षा है। पर सभी को एक-दूसरे की जरूरत हैं। फिर कहूँगा, यह दुनिया चलती ही है एक दूसरे के सहारे और सहयोग से। क्योंकि एक ही व्यक्ति सब कुछ नहीं कर सकता। सभी की अपनी योग्यता हैं और उसी हिसाब से अपने-अपने काम भी।
शांत थे अब सभी। खुश थे अब सभी ।
और उनके साथ-साथ उनका ईश्वर भी।
सागर की लहरें फिर वैसे ही वापस खुश-खुश अठखेलियाँ कर रही थीं। पर्वतों की धूप में चमकती चोटियाँ वैसे ही पर्यटकों का मन लुभा रही थीं। बादल भी खूब रिमझिम-रिमझिम बरस कर चारों तरफ़ हरियाली फैला रहे थे। और पवन भी तो कभी मन्थर तो कभी तेज़ गति से इधर-उधर दौड़ रहा था। पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, सभी प्राणी खुश थे। अपना-अपना काम करते, अपना-अपना जीवन जीते चहक रहे थे – कितनी खूबसूरत है अपनी दुनिया !
-शैल अग्रवाल
मलयित-सुरभित
ढूँढते फिर रहे चंदा तारे
उड़ते बादलों की टोली
उड़ गई देखो सांझ सुन्दरी
ओढ़ रात की चूनर अंधेरी।
सूरज भी जाने कहाँ पर खोया
आकाश बेचारा कितना रोया
चिड़िया रानी ढूंढकर लाओ
जाकर सबका पता लगाओ।
फुनगी-फुनगी फुदकी चिड़िया
चूँ चूँ करती दौड़ी-दौड़ी आई
मलयित सुरभीत सुबह
चोंच में भर लाई।
आकाश की गोदी में उसे बिठाया
किरणों ने भी खूब फिर दुलराया
आकाश हँसा सुबह लेकर गोदी में
भूला सब चिड़िया की बोली में।
-शैल अग्रवाल
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