आज रविवार की इत्मीनान वाली सुबह में घर की बालकनी में हल्की ठंडक के बीच गरम चाय की चुस्कियां लेते हुए अखबार पढ़ रहे थे| अन्दर के किसी चौथे पांचवे प्रष्ठ पर छपी एक छोटी सी ख़बर को पढ़ कर पहले आगे बढ़ गए| फिर लगा कि शायद कुछ ग़लत पढ़ लिया| वापस उसी खबर पर गए और फिर से ध्यान से पढ़ा “महिला ने बॉयफ्रेंड पर तेज़ाब फेंका”| यकीन नहीं हुआ| फिर पूरी खबर पढ़े तब जाकर यकीन हुआ कि गलत छपा नहीं है, सच में ऐसा हुआ है|
जिस देश में हम दशकों से लड़कों द्वारा लड़कियों पर तेज़ाब फेंकने की घटनाएँ देखते सुनते आये हों, वहां ऐसी खबर किसी आश्चर्य से कम नहीं| सरकार कठोर कानून बनाकर दोषियों को सज़ा देने का प्रयास कर रही है एवं तमाम संस्थाएं पीड़ित महिलाओं के इलाज़ और पुनर्वास से सम्बंधित योजनायें चला रही हैं| किन्तु शायद वो काफी नहीं है|
नागपुर की उपरोक्त घटना के पीछे का कारण स्पष्ट नहीं, किन्तु क्या उपरोक्त खबर को सुनकर लड़कों के मन में ये भय व्याप्त होगा कि अब लड़कियां भी पलट कर उनके साथ ऐसा ही कर सकती हैं| हालाँकि कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार किसी को नहीं, किन्तु कभी कभी पलटवार होने का डर कानूनन सजा होने के डर से ज्यादा प्रभावी होता है, अपराध रोकने के लिए|
सोंचियेगा ज़रूर||
अर्जित मिश्र
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