आकलनः अब ख़्वाब नए हैं-कवियत्री अनिता रश्मि

अब ख्वाब नए हैं : समय की नब्ज को पकड़ती कविताएँ

‘ अब ख्वाब नए हैं ‘ अनिता रश्मि का दूसरा कविता-संग्रह है जो हाल में ही प्रकाशित होकर आया है। इसके पहले इनका एक कविता- ‘ संग्रह जिंदा रहेंगी कविताएँ ‘प्रकाशित होकर प्रशंसित हो चुका है।
इस संग्रह की अनेक कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। अनिता रश्मि मूलतः कथाकार हैं। इन्होंने कहानियों-कविताओं के माध्यम से हिंदी साहित्य में प्रवेश किया था। इनके अब तक चार कहानी-संग्रह और दो उपन्यास, एक यात्रा वृत्तान्त, एक लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं तथा कई प्रकाशनाधीन हैं।
अनिता रश्मि की कविताओं में झारखण्ड की विडंबना, बेबसी, गरीबी, शोषण अत्याचार, भूख आदि का चित्रण हुआ है। इसके साथ ही कवयित्री ने अपने आस-पास जो कुछ देखा है, महसूसा है, उसे भी अपनी कविता का विषय बनाया है। इनकी कविताएँ प्रकृति के उस स्वरूप् का चित्रण करती हैं, जहाँ तक अन्य का ध्यान ही नहीं जाता है। प्रकृति इनकी कविताओं में इस तरह रच-बस गई कि इन्हे प्रकृति से
अलग करके नही देखा जा सकता है।
इनकी कविताओं के बारे में निरंजन प्रंसाद श्रीवास्तव ने पुरोवाक् में लिखा है – अनिता रश्मि की कविताएंँ शांत स्थिर क्षणों में सशक्त, संस्मृत, अनुभूतियों का स्वतः स्फूर्त प्रवाह
मात्र नही हैं अपितु इनका वर्तमान से, उसकी विद्रूपताओं से उसके जटिल और क्रूर पक्ष से भी संबंध है। ‘
यानी उनकी कविताओं का विषयवस्तु भूत-वर्तमान-भविष्य से लिया गया है ये कविताएँ पाठकों के दिल में उतर कर उनसे संवाद करती नजर आती हैं। कविताओं पर कहीं भी कवयित्री हावी नहीं होती दीख रही हैं। बल्कि उनके साथ कदम ताल करती हुई आगे बढ़ रही हैं।
‘ अब व्वाब नए हैं ‘ शीर्षक नामित कविता के माध्यम से कवयित्री ने मनुष्य की अदम्य जिजीविषा का वर्णन किया है। कोरोना के बाद पूरे देश में पलयन की जो स्थिति बनी थी, उससे कवयित्री का मन व्यथित रहा। वह अब नए ख्वाब की बात करती हैं। मजदूरों का शहर छोड़कर गाँव लौटना, फिर गाँव में ही मेहनत-मजूरी करके जीवन-यापन करने की लगातार कोशिश करना कवयित्री को प्रभावित
करता है। इसीलिए कवयित्री नए ख्वाब की ओर पाठकों का ध्यान दिलाना चाहती है। पुराने पड़ चुके ख्वाब
से जीवन सार्थक नहीं बन सकता है। इसके लिए अब नए ख्वाब की जरूरत है।

नहीं जगह बची उसके दिल में
अपने उजाड़ खेतों के लिए
कोई भी नया-सा ख्वाब,
खेत लाख कहते रह गए
अच्छी होती नहीं यूँ
सपनों की अकाल मृत्यु

‘ आवाज ‘ कविता के माध्यम से कवयित्री ने किसानों के द्वारा किए जा रहे आत्महत्या की ओर पाठकों का ध्यान
आकृष्ट कराया है। किसानों की आत्महत्या के बाद परिजनों के रोने की आवाज खो चुकी है, लाउडस्पीकरों की आवाज में। उस परिवार का मुखिया दम तोड़ चुका है, फाँसी लगाकर। कवयित्री का मन व्यथित है, ऐसे वातावरण से, इसलिए उसने लिखा है –

लाउडस्पीकर की आवाज में
वह सिसकी की आवाज
अपनी दिशा ही खोती हुई
उस किसान के
परले सिरेवाले फूस के
झोपड़े से उठती है,
जहाँ का बापू मर गया है
फँसरी लगाकर

औरत कविता के माध्यम से कवयित्री ने औरत के एक नए रूप का दर्शन करवाया है, जिसमें उफान है, आवेश है, प्रवाह है, आवेग है, सब कुछ को तहस-नहस करने का। औरत कुछ भी कर सकती है, जब वह ठान लेती है। नदी का आवेग सब कुछ पर विजय प्राप्त करते हुए समुद्र में जा मिलती है और वहाँ समुद्र का विनाशकारी रूप दिखाई पडता है। उसी प्रकार औरत सामाजिक जड़ताओं को तोड़ते हुए आगे बढ़ती है और उस पर विजय प्राप्त कर लेती है।

औरत
एक नदी-सी
अंत में समंदर तक
आते-आते
रेत की
तप्त नदी में
बदल जाती है
जब समंदर का विनाशी रूप
है देखती।

‘ यु़द्ध ‘ कविता के माध्यम से कवयित्री ने यु़द्ध की विभीषिका का वर्णन किया है। युद्ध की जमीन पर प्रेम की
खेती संभव नही है और नहीं उस पर कोई फसल उगायी जा सकती है। और न ही कोई फल ही। यहाँ तक कि थेथर भी नहीं उगाया जा सकता है, जो एकदम ढीठ होता है। युद्ध की जमीन पर उन्माद, खून की भूख और एक-दूसरे के खून के प्यास की ही फसल उगायी जा सकती है। कवयित्री ने युद्ध की भयावहता का वर्णन करते हुए लिखा है –

युद्ध की जमीन पर
उग आते हैं गोली-बारूद
तोपें, मिसाइलें, नफरत के बीज
हवा में लहराते फाइटर प्लेन
लहरों पे मचाते जंगी जहाज
शहीद हो जाने को
तैयार पूरी पलटन

‘ माँ : एक और कविता ‘ के माध्यम से कवयित्री ने माँ की विराटता का वर्णन किया है। माँ का हृदय अथाह सागर होता है। उसमें अपनी संतान के लिए सब कुछ सहन करने की शक्ति निहित होती है। वह अपने बच्चे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है। वह किसी भी रूप में माँ बने रहना चाहती है, लाख कष्ट क्यों न उसे उठाना पड़ जाए। माँ केवल माँ ही नही होती है, बल्कि वह कई रिश्तों को एक साथ जीती रहती है। कवयित्री ने लिखा है –

माँ कभी भी केवल माँ नही रहती
वह भाई-बहन, पिता-दादा
दादी-नानी और न जाने क्या-क्या बन
अनाम रिश्तों में जी लेती है
रह लेती जैसे-तैसे खुद
पर बच्चों की वृक्ष बनाने की
तमन्ना उसकी कभी मुर्झा पाती नहीं

‘ बैलूनवाला ‘ कविता के माध्यम से कवयित्री ने बैलूनवाले की भूख, गरीबी, बेबसी और अभाव का वर्णन किया
है। बैलूनवाला असमय ही जवान हो जाता है, अपने परिवार की परवरिश करने के लिए। समय ने उस पर
ऐसा बोझ लाद दिया है जिससे वह कभी भी बाहर नहीं निकल सकता है। वह बैलून के रंग-बिरंगे स्वरूप से भले ही दूसरों में खुशियाँ भर देता है, पर उसकी खुशी गायब है। कवयित्री ने लिखा है –

बैलून के चटख रंगों का
मोहताज नहीं वह
बेरंगे जीवन में सादी,
आधी, अधजली रोटी से ही
चेहरे पर उसके
रंगों के इंद्रधनुष खिल उठते हैं।

‘ ठूँठ को जिलाया जाए ‘ कविता के माध्यम से कवयित्री ने संबंधों में हो रहे बिखराव की ओर पाठकों का ध्यान
खीचा है। रिश्ते टूटते जा रहे हैं, और लगातर टूट रहे हैं। आज के समय में रिश्तों की अहमियत नहीं रह
गयी है। यही कारण है कि संबंधों की श्रृंखला जो मजबूत हुआ करती थी, वह कमजोर हो गयी है।
कवयित्री आग्रह करती हैं कि ठूँठ होते रिश्तों को बचाया जाए, ताकि जीवन की गर्मी बरकरार रहे। वे लिखती हैं –

तो चलो हम बचाएँ
ठूँठ होती जाती
पूरी की पूरी पीढ़ी की
मरती आत्मा को,
बिखते रिश्तों को
चलो एक नई साँस दें
रिश्ते को ऊँचाई
प्यार की प्यास दें

‘ आज ‘ कविता के माध्यम से कवयित्री ने कविता के बदलते स्वरूप् का वर्णन किया है। कविता पहले गुलाब
और प्रेम की बात करती थी, लेकिन अब परिवर्तन की बात करती है, और बदलाव की ओर हमारा ध्यान खींचती है। कवयित्री ने लिखा है –

आज कविता
सरल सहज नहीं
उसने अपने रंग, चलन, ढब
बदल लिये
न जाने कब से
उसकी बातों में
सरोकारों में
बंदूक, गोली, बारूद की
धमक भर गई

अब चुप न रहो कविता के माध्यम से कवयित्री ने कवियों से अनुरोध किया है कि वह अपनी कविता के द्वारा
सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करे। वह किसानों की बेवजह हो रही आत्महत्याओं, बेटियों की भ्रूण हत्याओं,
बेटों के आत्मघाती हमलों से चिंतित हैं। यही कारण है, वे कहती हैं कि तुम सही पड़ताल करके उसका समाधान प्रस्तुत करो, ताकि समाज में फैली अराजकता का माहौल ठीक हो सके। उन सभी विषयों पर कविता लिखो, जिससे समाज बेहतर बन सके।
कवयित्री ने लिखा है –

सारे भेद खोलने दो कविता
कवियों के कोने-अंतरे में घुसकर
किसान की आत्महत्या
बेटी की भ्रूण हत्या
बेटों के आत्मघाती हमले,
पँख पसारे बगुलों-सा
दो फैलने सारे राग-विराग समय के

‘ अब ख्वाब नए हैं ‘ – कविता संग्रह के माध्यम से कवयित्री अनिता रश्मि ने वर्तमान समय की नब्ज को
पकड़ने की कोशिश की है। उसमें हमारे समय का सच वर्णित हुआ है। वह सच जो हमें डराता भी है और
अचंभित भी करता है। कवयित्री की भाषा सहज और सरल है, जो पाठकों को अनायास ही अपना बना लेती है। एक बार संग्रह पढ़ना शुरू कर देने के बाद बिना पूरा पढ़े छोड़ने का मन नहीं करता है। प्रूफ की गलतियाँ कहीं-कहीं खटकती हैं। छपाई साफ-सुथरी है लेकिन मूल्य अधिक है, कम रहता तो बेहतर होता ।

अब ख्वाब नए हैं – कविता – संग्रह
कवयित्री – अनिता रश्मि
प्रकाशक – रवीना प्रकाशन, दिल्ली – 110094
मूल्य – 370/- रूपये,
पृष्ठ – 154,
वर्ष – 2020 ई0

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समीक्षक का पता –
डॉ.नीलोत्पल रमेश
पुराना शिव मंदिर, बुध बाज़ार
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कवयित्री का पता –
अनिता रश्मि
1 सी, डी ब्लाक, सत्यभामा ग्रैंड, कुसई, डोरंडा, राँची, झारखण्ड – 834002
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