१.
वह पक्का व्यापारी था, चालाक और तेज। अपने गधे बेचकर घोड़े खरीदना चाहता था वह भी उतने ही और उतने ही पैसे में जितने के गधे उसने बेचे थे। पर आलाम यह था कि अब न तो उसके पास गधे ही थे और ना ही घोड़े ही।
सामने वाले को कितना कम समझता है इनसान बुद्धि के लालच भरे हेर-फेर में !
शिवजी हंसकर बोले, पर सुनो पार्वती, पर यह खेल है बहुत खतरनाक और घातक , एटम बम की चपेट में आने से भी ज्यादा। …
***
२.
चील ध्वज लेकर उड़ चुकी थी, वह भी मंदिर के गुंबद के शीर्ष से। अब तो निश्चित ही प्रलय आएगी, बड़ी लड़ाई या विध्वंस कुछ-न कुछ भयानक और विनाश भरा, जैसे युद्ध या दैवीय आपदा याद नहीं पिछली बार ध्वज जला तो करोना आया था?
…अच्छा शगुन नहीं यह।
अफवाहों का बाजार गर्म था। लोग डरे घरों में छुप गए। मंदिर आना तक छोड़ दिया। हालांकि पंडित जी भलीभांति जानते थे कि हवा के वेग ने दिशा के विपरीत लहलहाते ध्वज को आधे से अधिक बाहर निकाल फेंका था। पर शिष्य से ठीक करवाएँ, इसके पहले ही यह कांड हो गया। वरना चील की चोंच में इतनी ताकत कहाँ थी कि ध्वज को ले उड़े? और वह करोना भी तो ध्वज जलने से पहले ही फैल चुका था। पर किसको याद रहता है कुछ भी।
पर सुनो पार्वती , अफवाहों का यह हेर-फेर फैलाना भी तो उतना ही खतरनाक और घातक है समाज के लिए जितना कि उन पर एटम बम फेंकना।
पर आदमी ठहरा गलतियों का पुतला…बाज कब आया है ईश्वर-ईश्वर खेलने से भी ! …
शैल अग्रवाल
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