दो लघुकथाएँः मोहन कल्पना


वचन
आज तीन कुटुंब मंदिर के बाहर मातम मना रहे हैं. कालू और नीतू की लाशें मंदिर के सामने रखी हुई हैं. कल ही तो मोहन और नीतू की शादी हुई थी और आज ही उनके सब अरमान उस आग की लपटों में जल कर राख हो जायेंगे. मोहन बार-बार नीतू के पिता से कहे जा रहा था.. “अंकल दोषी आप हैं जो नीलू की शादी कालू से न करवाकर उसकी ज़िंदगी की डोर मुझसे बांध दी. अगर नीलू मुझे एक बार भी दिल की बात बताती, तो मैं खुद उसकी शादी कालू के साथ करवा देता.
 कालू के पिता पर बार बार मूरछा हावी हो रही थी. उसके एक मात्र पुत्र ने नीलू के प्यार में खुद को कुर्बान कर दिया. नीलू और कालू मेडिकल कालेज में साथ पढ़ते रहे और साथ -साथ ज़िंदगी गुज़ारने और साथ जीने मरने के वादे कर बैठे. नीलू के बाप के पास बेशुमार दौलत थी, जिसके बलबूते पर उसने एक उध्योगपति मोहन से अपनी बेटी की शादी करा दी। पर आज नीलू उनसे भी हमेशा के लिये मुँह मोड़कर चली गई. कालू और नीलू ने एक दूसरे को दिया वचन पूरा किया.

लेखकः मोहन कल्पना
मूल सिंधी से अनुवाद देवी नागरानी




गर्जना

ओहदे का नशा अच्छे भले को मंझदार में धकेल देता है, फिर भला माणिक लाल किस खेत की मूली था. बिच्चारा ३२ साल क्लर्क की हैसियत से काम करते बेज़ार हो गया था. मैनेजमेंट मेम्बेर्स के आगे हाथ जोड़ना, अपने बस में जितनी सेवा करने की क्षमता थी वो करके, अच्छे काम करने के वादे करके किसी तरह सुपेर्विजर की कुर्सी हाथ की. उसके पक्के होने की बात तक बाहर न आने दी और न ही कर्मचारियों को भी कुछ पता चलने दिया.
जब बात पक्की हुई तो ऐलान हुआ, पार्टियां दीं, कुछ कर्मचारियों को अपना दायाँ और बायाँ हाथ चुना. माणिक लाल बहुत खुश था. उसका असली रंग भी दिखाई देने लगा. उसका शकी स्वाभाव, हर काम से नुख्स निकलना, थोड़ी ग़लती पर कर्मचारियों को बुलाकर उनपर कुर्सी का रौब जमाना, मतलब यह कि उसने तंग करने के तरीके अख्तियार कर लिए। शोर करने वाले सब शेर तो नहीं हो सकते , पर बचाव के रास्ते तंग होने लगे. एक गुफा में इतनी आवाजें ! किसकी आवाज़ सुनी जाय?
गर्जना की आवाज़ बढ़ रही थी. देखें आगे आगे होता है क्या?
लेखकः मोहन कल्पना
मूल सिंधी से अनुवाद देवी नागरानी

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