कहानी समकालीनः स्वप्न या सच-इन्दु झुनझुनवाला

सुबह उठी, हाथ मुहँ धोया ।
कमरे से बाहर निकली , सामने रखे अखबार पर नज़र पड़ी, सुर्खिया पढकर चौंकी मैं, नीचे छपा फोटो…आत्महत्या… स्वीमिंग पुल में !

अरे ये तो वही लड़की है, जिसने मुझे वीडियो कॉल किया था!

नहीं जानती कौन थी वो बिस्तर पर बैठी, बगल में एक नवयुवक अपने फोन पर , काली शर्ट में उसका दोस्त या भाई… या पति … कोई भी … मुझे क्या!
मैं जूली बोल रही हूँ ।
कौन जूली?
आप मिले हैं मुझसे, भूल गए।
जी, मुझे याद नहीं, बताएँ।
आप एक प्रोग्राम में मिले थे, मैं गाती हूँ, अभिनय भी करती हूँ।
आज आपसे बात करने की इच्छा हुई।
हम ऊटी जा रहे थे, सोचा आप भी चलें।

जी, अच्छा लगा आपसे बात करके।
जरूर हम कभी मिलेंगे।

—–

अचानक कोई आया मेरे पास, शायद सी आई डी आफिसर था। उसने कहा, ये फोटो आपने खींची हैं।
कौन-सी फोटो?
उसने कैमरे से दो फोटो दिखाई ।
याद आया मुझे, रिसोर्ट का स्वीमिंग पूल, उसमें क्रीड़ा करते लोग।

दूर से देख रही थी मैं। अचानक एक अधेड़ उम्र का एक व्यक्ति आया, ढीला-ढाला सफेद रंग का कुरता-पैजामा, बाल बेतरतीब से, बिल्कुल गोरा-चिट्टा पर लापरवाह-सा।
उसने अपना मोबाईल मुझे दिया और कहा – क्या आप थोड़ी फोटो खींच देंगी इस जगह की ?

हाँ क्यों नहीं!- कहा मैंने।

उसका फोन लिया और फोटो खींचने लगी। वो आदमी दूसरी ओर चला गया।
——

अरे, ये तो वही फोटो है, पर ये मोबाईल और फोटो इसके पास कैसे?
कुछ सोच पाती उसके पहले ही उस आफिसर ने कहा- जरा इन फोटो को इनलार्ज करके देखें।
मैंने उन फोटो को इनलार्ज किया, वो तो वीडियो थे। चकित रह गई मैं। हैरान परेशान भी,
एक वीडियो जिसमें एक लड़की जिसने ग्रे और ब्लैक कलर की चीते के खाल की डिजाइन वाली फुल ड्रेस पहनी थी, दो लडकों ने उसे एक ओर पैर से और दूसरी ओर दूसरे लड़के ने उसके दोनों हाथों को पकड़ रखा था और उस पूल के दोनों टीलों पर खड़े होकर झूले की तरह झुला रहे थे। और अचानक उन्होंने खेल खेल में जैसे उस लड़की को पानी में डुबकी लगवाई। फिर दूसरी बार, और अरे ये क्या, तीसरी बार पूरा डूबो दिया!

मैं सन्न देखती रही।
***
अचानक उस आफिसर ने दूसरा वीडियो चलाया, उसमें वो अधेड उम्र व्यक्ति डाइनिंग टेबल पर कुछ लोगों के साथ बैठा है। और एक पैसों से भरी बैग का आदान प्रदान।

सी आई डी ने पूछा-ये दोनों विडियो आपने बनाए हैं?

मैं अवाक्…मैंने फोटो तो खींची थी पर वीडियो?
और ये दोनों दृश्य कैसे कैप्चर हुए ? मुझे पता नहीं चला, और मैं गवाह बन भी गई अनजाने ही।
पर ये लड़की,
ये तो वही फोन वाली थी जिसने मुझे अपना नाम जूली या जूही बताया था,
मन विचारों के भँवर में उलझ गया।
मैं कैसे उस रिसोर्ट में?
उसने मुझे ही न्यौता क्यों दिया, मैं वहाँ कैसे पहुँची, और उसकी हत्या की गवाह भी?
बस इस विचारों के बवंडर से घवरा-सी गई और आँख खुल गईं।

***
अरे ये तो सपना था, पर कैसा सपना था, सोच रहा था मन।

और सामने रखा ये न्यूज पेपर , आत्महत्या की खबर थी उस लड़की की।
उसमें सी आई डी की रिपोर्ट और फोटो इसे हत्या का मामला साबित कर रही थी !
पर मेरा स्वप्न?
आखिर क्या है ये सब?
और क्यों ?
मैं हूँ क्यों?

क्या कोई है, जो चाहता है कि मैं ये सच बताऊँ , पर ये तो सपना था कैसे कोई विश्वास करेगा?

हालाँकि अखबार की फोटो में उसने वही कपडे पहने थे, जो उस वीडियो में कैप्चर हुआ था।
पर मैं वहाँ पहुँची कैसे, और फोटो और वीडियो?
सब कुछ स्वप्न में , पर हकीकत से जुड़ा हुआ।

एक रहस्य!

****

पता नहीं क्यूँ , पर मन तलाश रहा था कोई छोर, जिसके सहारे इस गुत्थी को सुलझाया जा सके।

मैं तो अपने शहर में ही थी और हूँ, फिर वो वीडियो , वो दृश्य जो सपने में देखे और आज का ये न्यूज पेपर , जो गवाह है उसकी आत्म हत्या के?

स्वप्न सच था या न्यूज पेपर, ये आत्महत्या थी या हत्या?

ये कौन है जब तक जान न लूँ चैन नहीं था मुझे।

आखिर इसी उधेड-बुन में पहुँची पुलिस स्टेशन, पेपर साथ में लेकर।

“क्या इसका पता मिल सकता है मुझे?”

पुलिस हैरान!

“आप इन्हें जानती हैं?”

‘हाँ’-जाने कैसे मुँह से निकल गया।

अच्छा, कैसे और कब से जानती हैं?

अब क्या बताती, अचानक यही जबाब सूझा, कभी मिली थी किसी पार्टी में, इसकी माँ के साथ, इसलिए शोक प्रकट करने जाना चाहती हूँ बस इसीलिए।

हूँ।

पर इनकी माँ नहीं।

“हाँ एक छोटा भाई है , पता है मुझे।”- मुहँ से निकला।

पुलिस ने मुझे अजीब नजरों से घूरा और एक कागज की कतरन पर कुछ लिखकर मेरी ओर बढ़ा दिया।

मैं चुपचाप घर चली आई।

अब आगे! मुझे ये पता ढूँढना था। पास के शहर का था।

सहेली से मिलने का बहाना कर निकली।

दो धंटे में उस शहर में पहुँची।

आंध्रप्रदेश का एक छोटा- सा गाँव।

घर का पता आसानी से मिल गया, पर वहाँ एक ताला लगा था।

पास-पडोस से पूछा तो इतना ही पता चला कि जूली ने आत्महत्या के दो दिन पहले अपने छोटे भाई को पढ़ने के लिए लंदन भेज दिया था। और उसका कोई नहीं था।

****

इसका मतलब वास्तव में जूली ने आत्महत्या की थी?

क्या ये उसकी योजना थी, इसलिए उसने भाई को विदेश भेजा।

पर क्यों? क्यों की आत्महत्या? क्या कारण था?

अगर आत्महत्या की थी तो फिर मेरा वो स्वप्न?

गुत्थी उलझती जा रही थी।

आखिर ये करती क्या थी और इसके दोस्त या कोई और सम्बन्धी?

पर कौन था जो मेरे प्रश्न का उत्तर देता।

सोचते हुए मैं उस गली से बाहर निकलने वाली थी कि अचानक बगल की गली से एक बूढ़ी लकड़ी के सहारे चलती हुई निकल कर आई और कहा, बेटी, मैं तो उसके बारें में अधिक नहीं जानती, हाँ उसकी ये फाइल मेरे पास है, शायद तुम्हें काम आए।

उसने मुझे एक फाइल थमाई और मुड़कर चली गई, जबतक मैं कुछ पूछ पाती, वो आँखों से ओझल हो गई थी ।

मैं हैरान । मैंने मुड़कर फिर उस पडोसी से पूछा, ये कौन थी, उसने कहा, हमने इसे पहले कभी नहीं देखा।

***

मेरी छठी इन्द्रिय कुछ संकेत दे रही थी।

कुछ तो है जो पर्दे के पीछे है और मुझे सूत्रधार बनाया जा रहा है।
***

मैं डरी नही।

चुपचाप घर वापस आ गई।

लगा ये फाइल जरूर कुछ खास है, जिसमें मुझे अवश्य सूत्र मिलेगा।

रात हो गई थी, बहुत थक गई थी, खाना खाने के बाद पड़ते ही नींद आ गई।

****
सुबह आँख खुली तो सामने रखी फाइल पर नज़र पड़ी।

खोला उसे तो उसमें एक लाल रंग की सुन्दर-सी फूलों वाली डायरी थी।

उसे खोला , पहले पन्ने पर ईश्वर का आभार लिखा था।

अच्छा लगा, पन्ना पलटा, पढ़ा तो पढ़ती चली गई,

कब सुबह दोपहर में, और दोपहर शाम में ढली, अहसास ही नहीं हुआ।

नौकरानी कितनी बार देखने आई वो, कुछ पूछा भी होगा शायद खाने के लिए , मुझे पता नहीं ।

वही सोफे पर पड़े-पड़े पढ़ते-पढ़ते पूरा दिन बीत गया।

शाम को जब कमरे में किसी ने बत्ती जलाई तो मुझे होश आया, मैं इतनी कम रोशनी में भी पढ़ रही थी।

मैडम , आपके लिए कुछ लेकर आऊँ , आज आपने कुछ नहीं खाया है सुबह से?

***

पहले पन्ने पर ईश्वर का आभार लिखा था। अच्छा लगा।

कब सुबह दोपहर में, और दोपहर शाम में ठली, अहसास ही नहीं हुआ।

नौकरानी कितनी बार देखने आई । कुछ पूछा भी होगा शायद खाने के लिए , मुझे पता नहीं , वही सोफे पर पड़े-पड़े पूरा दिन बीत गया ।

शाम को जब कमरे में किसी ने बत्ती जलाई थी तब मुझे होश आया कि अरे, आज तो मैंने स्नान-पूजा तक नहीं की। सुबह उठते ही इस डायरी ने अपने पास ऐसा खींचा कि मैं सब कुछ भूलकर बैठी रह गई इसके साथ।

***
मेरे सामने पूरा सच था उसका।
ऐसा भी होता है, हो सकता है, कोई ऐसा भी कर सकता है?
बस एक सवाल ये और दूसरा ये कि मैं ही क्यूँ?
उसने इन सबके के लिए मुझे ही क्यों चुना? क्या वो जानती थी मुझे?

वो मुझसे क्या चाहती है, क्या ये सच मैं दुनिया को बताऊँ?
मैं लेखक हूँ वो जानती थी शायद ।
इसीलिए चुना होगा, पर मैं ही क्यूँ?

मेरे इन प्रश्नों का जबाब देने वाला वहाँ कोई नहीं था।
अब ?
अब मुझे क्या करना होगा?
क्या ये डायरी पुलिस को दूँ?
क्या वो यही चाहती है?
अगर ऐसा होता तो मुझे ये डायरी क्यूँ मिलती, पहले ही पुलिस को क्यों नही?

इसी उधेड़बन में बैठी मैं उस फाइल में फिर उस डायरी को रख रही थी तभी उस फाईल से एक कागज का टुकड़ा नीचे गिरा।
उसे उठाया तो उसमें जो लिखा था, उसने मुझे और भी हैरत में डाल दिया।
न चाहते हुई भी कलम उठा ली मैंने और उसकी अजीबो-गरीब कहानी का हिस्सा बन बैठी।

उत्सुकता आप सभी को भी होगी अवश्य, आखिर क्या हुआ था!
बताऊँगी आप सभी को, पर मुझे इसे आत्मसात करने में वक्त लगेगा, क्योंकि जो पढ़ा, उसे विश्वास करके उसे आप सभी के विश्वास योग्य बनाना आसान नहीं ।
उसने मुझे चुना, एक अन्जान शख्स को, उसके विश्वास पर खरा भी तो उतरना है मुझे!

डॉ इन्दु झुनझुनवाला, बैंगलोर

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