वह लड़की बड़ी अजीब तरह से बैठी है, उन दोनों ने रेलवे स्टेशन के यात्री-गृह के भीतर प्रवेश करते ही उसे देखा। बड़े-से हॉल नुमा यात्री-गृह में कई बेंच और सोफ़े बहुत सलीके से रखे हुए हैं। एक तरफ खाने-पीने की चीज़ों की मशीन लगी हुई है और साथ ही चाय-काफी की मशीन भी वहीं पर है। उन मशीनों के ठीक सामने ही वॉशरूम, जिन्हें यहाँ रेस्टरूम कहते हैं, बने हुए हैं। सभी सोफ़े और बेंच तकरीबन भरे हुए हैं। उन दोनों ने कमरे में नज़र दौड़ाई, उस लड़की के सामने वाले बेंच के कोने में उन्हें ख़ाली जगह दिखाई दी। वे दोनों वहीं बैठ गईं। दोनों ने लंबी साँस ली। अंततः वे समय पर पहुँच गईँ। बैठते ही उनका ध्यान उस लड़की की ओर गया। वह लड़की उनके सामने वाले सोफ़े के कोने में बैठी है। उसने अपनी टाँगें अपनी छाती से लगाई हुई हैं और घुटनों को अपनी बाज़ुओं में कसा हुआ है। कभी अपना मुँह अपने घुटनों में छिपा लेती है, कभी अपना चेहरा ऊपर उठा कर अपनी ठुड्डी घुटनों पर रख लेती है। उस लड़की के उदास चेहरे और आँखों में उतरी पीड़ा ने उन दोनों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने उसके साथ बैठे अधेड़ उम्र के व्यक्ति पर उचटती-सी नज़र डाली। किसी को भी सीधे देखना यहाँ शिष्टचार के खिलाफ समझा जाता है। वह अधेड़ उम्र का लंबा-चौड़ा व्यक्ति है।
‘ये बाप-बेटी नहीं लगते।’
‘मुझे भी ऐसा ही लग रहा है।’ दोनों ने बड़ी धीमीं आवाज़ में एक दूसरे से कहा।
‘लड़की चीन की लगती है और पुरुष अमेरिका या यूरोप का।’ एक बोली।
‘लड़की थाईलैंड या वियतनाम की भी हो सकती है।’ दूसरी ने कहा।
‘हाँ, हो सकती है। सोलह सत्रह साल से कम नहीं।’
‘इन देशों की लकड़ियाँ बड़ी उम्र में भी छोटी लगती हैं।’ बातें करती हुईं वे उस लड़की को बीच-बीच में देख रही हैं। उस लड़की के साथ बैठे पुरुष ने उनकी उचटती नज़रों को भांप लिया। वह सचेत होकर बैठ गया। उसने लड़की की पीठ पर अपना भारी-भरकम हाथ रखा। लड़की सिहर उठी। उसका बदन काँप गया, ऐसा लगा जैसे उसके ज़ख़्म पर किसी ने हाथ रख दिया हो। उसकी बाँहों से उसकी टाँगे छूट गईं। उसके चेहरे पर घबराहट और आँखों में पानी चमकने लगा। उस व्यक्ति ने लड़की के कान में कुछ कहा। वह सोफ़े पर टाँगे नीची कर, हाथ आपस में बाँध कर, सिर और पीठ सीधी करके बैठ गई। एक रोबॉट की तरह। वहाँ बैठे जिस किसी ने भी उस पुरुष को उस कमसिन बाला के कंधे पर हाथ रखते देखा होगा, वह ज़रूर जान गया होगा कि वह लड़की उस पुरुष से बेहद डरती है। उन दोनों ने भी उसका भय देखा।
‘शिल्पा, दाल में कुछ काला लगता है। ये बाप-बेटी नहीं।” दोनों में से एक बोली। इसका मतलब एक का नाम शिल्पा है।
‘नयना, यहाँ दाल ही काली लगती है, देखा हाथ रखते ही लड़की कैसे सहम गई? अब किस तरह बुत बनी बैठी है!’ पता चल गया कि दूसरी का नाम नयना है।
‘शिल्पू, सोच ज़रा, हमारी फ़्लाइट छूट गई, कार से ड्राइव करके शार्लेट, नॉर्थ कैरोलाइना जाने का मन नहीं हुआ, हमने रेलगाड़ी से जाने का निर्णय ले लिया? अरे हम तो समाचार जगत् के लोग हैं, तुम फ़ोटोग्राफ़र हो और मैं पत्रकार। कार हमारा पहला घर है, दूसरे असली घर में तो हम सोने जाते हैं। सैंकड़ों बार कार से शार्लेट, नॉर्थ कैरोलाइना गए हैं। किस शक्ति ने मजबूर किया, गाड़ी में सफर करने के लिए। यूँ ही तो यह नहीं हुआ, कोई कारण तो होगा,जिसका मुझे थोड़ा-थोड़ा एहसास हो रहा है!’ नयना का चेहरा गंभीर हो गया है।
‘सही कहा तुमने, मुझे भी आभास हो रहा है।’ शिल्पा भी चिंतित है।
‘अभी आई।’ कह कर नयना फ़ोन लेकर वहाँ से उठ गई।
दोनों अपने सहकर्मी की शादी में शामिल होने शार्लेट, नॉर्थ कैरोलाइना जा रही हैं और शिल्पा का दिमाग अशांत है। बेंच की पीठ से सिर लगा कर, आँखें बंद कर वह अधलेटी-सी हो गई, ताकि दिमाग थोड़ा शांत हो सके। एक सेमिनार में मिसिज़ जूलिया पर्ल, प्रसिद्ध समाज सेविका की कही बातें उसके दिमाग में कौंधने और कानों में गूँजने लगीं। स्त्रियों के शोषक आस-पास ही होते हैं। उनका व्यवहार सबके सामने होता है, पर अक़्सर उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। यहीं से शोषक और उसका शोषण मज़बूत हो जाता है। किसी मुसीबत में न पड़ जाएँ, यह कह कर लोग तक़रीबन शोषण होता देखकर भी अनदेखा कर देते हैं, संकेत मिलते हैं पर उन्हें स्वीकारना नहीं चाहते। इस तरह की मानसिकता समाज को घुन की तरह खोखला कर रही है। किसी अधेड़ उम्र या गुण्डा-सा दिखने वाले या काइयाँ आँखों और शरीफ-सा दिखने वाले पुरुष के साथ डरी, सहमी और घबराई हुई युवती या बालिका को देखो तो उपेक्षा न करो। हो सकता है, वह तस्कर हो या दलाल हो। ज्यों ही यह बात शिल्पा के कान में गूँजी, वह बौखला कर उठ बैठी। जल्दी से उसने अपने पर्स से पानी की बोतल निकाली और गटागट पीने लगी।
नयना उसकी हड़बड़ाहट देखकर तेज़ी से उसके पास पहुँची।
‘तुम ठीक तो हो।’ नयना ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा।
‘हाँ’ , शिल्पा ने सँभल कर बैठते हुए कहा। तभी उसे मोबाइल पर संदेश आने का संकेत मिला। संदेश देखते ही वह पढ़ने लगी-
संदेश नयना का था, ‘आदेश मिले हैं कि संदेश से ही बात करें। दरअसल इस लड़की को देखकर मुझे मिसिज़ जूलिया पर्ल की बातें याद आ गईं, जो पिछले दिनों हमने एक सेमिनार में सुनी थीं। मुझे शक हो गया और मैंने माइकल कीट्स को कॉल किया, जो फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ लॉ में हैं और उनकी ऐसे केसों में महारत है। उन्होंने ही संदेशों में बात करने के निर्देश दिए हैं, ताकि आस-पास किसी को शक न हो, कि हम कुछ भाँप गए हैं। हम आपस में बतियाएँ पर इधर-उधर की बातें करें, विशेष बातें मैसेज से करें।’
‘नयना तुम्हें जो याद आया, मुझे भी वही याद आ रहा था, तभी बौखला कर उठी। है न हैरानी की बात।’
‘तीन साल से हम एकजुट हो कर काम कर रही हैं, दिमाग भी वैसा ही सोचने लगता है।’
‘सही कहा।’
वहाँ बैठे लोगों में हलचल शुरू हो गई, इस का मतलब गाड़ी प्लेटफॉर्म पर पहुँचने वाली है। उसी समय चारों तरफ के स्पीकरों पर एक भारी भरकम आवाज़ पाँच मिनट में गाड़ी के प्लेटफॉर्म नंबर 2 पर पहुँचने की घोषणा करती उभरी। सभी अपना-अपना सामान थामे प्लेटफॉर्म नंबर 2 की ओर चल पड़े। शिल्पा और नयना ने भी अपने सूटकेस पहियों पर खड़े किये और अपने हाथ के बैग को कंधे पर लटकाया। तभी उनकी नज़र उस लड़की पर पड़ी। उसके साथ बैठे अधेड़ उम्र के लंबे-चौड़े व्यक्ति ने उसे बाँह से पकड़ कर खड़ा किया, वह शायद उठना नहीं चाह रही या उससे उठा नहीं जा रहा या वह उसके साथ जाना नहीं चाहती। उस व्यक्ति ने उसके कान में कुछ कहा, वह उसके साथ चल पड़ी, घिसटती-सी, जैसे उसके बदन में चलने की ऊर्जा नहीं। शिल्पा और नयना के साथ बैठे दो हट्टे-कट्टे बलिष्ठ युवक उस लड़की और अधेड़ उम्र के पुरुष के पीछे हो लिए। अधेड़ उम्र के पुरुष ने उस लड़की का बाज़ू छोड़ उसका हाथ पकड़ लिया। लड़की चल नहीं रही, सरक रही है। अजीब-सा दृश्य बन रहा है। साथ चल रहे यात्री उन्हें देखते और ऑंखें झुका लेते। शिल्पा और नयना भी उनके पीछे चल पड़ीं।
हॉल से निकल कर कुछ क़दमों की दूरी पर ही प्लेटफॉर्म नंबर 2 है। वहाँ पहुँच कर सब चुपचाप अपनी-अपनी टिकट पर दिए नंबर और निर्धारित स्थान पर पंक्ति में खड़े हो गए।
‘शिल्पा, हमें जिस तरह के रेलवे स्टेशनों का अनुभव है, लोगों का शोरगुल, चाय-पकौड़ों की आवाज़ें, कई तरह की स्वर-लहरियाँ कानों के आस-पास लहराती रहती हैं; एक शांत-चुप रेलवे स्टेशन पर गाड़ी पकड़ना कितना अलग-सा लग रहा हैं।’
‘नयना, इतनी देर से हम बैठी हैं, किसी ने यह नहीं पूछा, कहाँ से आई हो ? कहाँ जाना है ? शादी हुई है ? क्या काम करती हो ? किस गाँव या शहर की हो ? बस सब अपने-आप में मस्त हैं। गाड़ी पकड़ने का कोई मज़ा ही नहीं आ रहा।’
‘यही तो इस देश की समस्या है। पाँच साल हो गए यहाँ आए, किसी ने यह नहीं पूछा; आप किस खानदान से हैं, आपकी जाति क्या है? हर कोई अपनी धुन में मग्न है, अपने-अपने फ़ोन पर आँखें गड़ाए। काम पर बस प्रबंधक जानना चाहते हैं कि आप क्या हैं?और आपकी क्षमताएँ क्या हैं? बाकी तो किसी के पास समय नहीं।’
‘फ़ोन पर आँखें गड़ाए रखना तो आज के युग की देन है।’ इस पर दोनों मुस्करा दीं।
सिग्नल नीचे हुआ, गाड़ी ने सीटी बजाई, और गाड़ी के आने का पता चल गया। हल्की सी हलचल हुई। यात्रियों ने अपना-अपना सामान उठा लिया।
‘क्या यार! कोई धक्का नहीं पड़ा, कोई चिल्ल-पों नहीं।’ कहते हुए शिल्पा ने नयना को अपने कंधे से धकेला और दोनों खिलखिला कर हँस पड़ीं। गाड़ी आकर रुक गई और निशान वाले जिस निर्धारित स्थान पर वे दोनों पंक्ति में खड़ी हैं, गाड़ी का एक डिब्बा उनके सामने खुला और टीटी (टीटीई) वहाँ से निकल कर नीचे प्लेटफॉर्म पर आकर खड़ा हो गया और उसके हाथ में छोटा-सा स्टूल है, जिसे उसने डिब्बे में जाने वाली सीढ़ी के नीचे रख दिया। वह सीढ़ी ज़मीन से काफी ऊपर है। घुटनों की समस्या वालों या बुज़ुर्गों को उस सीढ़ी पर चढ़ने में तकलीफ़ हो सकती है। उनके लिए यह सुविधा दी गई।
पंक्तिबद्ध यात्री अपने-अपने सामान को लेकर टीटी के पास पहूँचने लगे। वह सबकी टिकटें देखता, उन्हें डिब्बे के अंदर जाने के लिए मदद करता और टिकट देख कर डिब्बे के दरवाज़े से दाईं तरफ या बाईं तरफ जाने का इशारा करता। जब उस लड़की की बारी आई, जो नयना और शिल्पा के आगे है, उससे गाड़ी में चढ़ा नहीं गया। टीटी ने जब उसे गाड़ी में चढ़ने की मदद करनी चाही तो उसके साथ वाले अधेड़ उम्र के लंबे-चौड़े व्यक्ति ने आगे होकर लड़की को कमर से पकड़ कर ऊपर चढ़ा दिया। लड़की कराही। टीटी ने उस व्यक्ति की टिकट देखते हुए उसे गौर से देखा। उसके बाद ही दोनों हट्टे-कट्टे बलिष्ठ युवक भी चढ़ गए। वे बाईं तरफ के डिब्बे में गए। टीटी ने नयना और शिल्पा को भी वहीं जाने का इशारा किया।
‘अरे इसकी सफाई और सीटें तो हवाई जहाज़ की तरह हैं।’
‘तकरीबन सारा डिब्बा भर गया है, पीछे कुछ सीटें खाली हैं। चल पीछे चलते हैं।’
वह लड़की और उसका साथी पीछे की सीटों पर बैठे हैं।
‘ताज्जुब हुआ यह देख कर कि वे दोनों हट्टे-कट्टे बलिष्ठ युवक इकट्ठे नहीं बैठे, बल्कि एक उस लड़की और उसके अधेड़ उम्र के लंबे-चौड़े साथी के आगे की सीट पर बैठा है, दूसरा उनके पीछे की सीट पर। साथ वाली सीटें खाली हैं।’ नयना ने बैठने के लिए सीट ढूँढ़ते हुआ कहा।
‘अरे उनके सामने ही दो सीटें खाली हैं, चलो वहाँ बैठते हैं।’ कह कर शिल्पा और नयना खाली सीटों पर बैठ गईं।
‘मुझे तो लड़की पर तरस आ रहा है, किस तरह तड़पी थी गाड़ी में चढ़ते समय। क्या हम इसके लिए कुछ नहीं कर सकते? ‘ शिल्पा ने अपना बैग आगे रखा और टाँगें पसारते हुए कहा। तभी एक सिटी के साथ ही गाड़ी चल पड़ी।
नयना ने अपने पर्स से फ़ोन निकाला और लिखने लगी- ‘शिल्पा, जो हम कर सकते थे, कर तो दिया है। माइकल कीट्स को कॉल कर दिया है। इनकी तस्वीरें खींच कर भी भेज दी हैं। माइकल कीट्स का नाम नहीं बोलना चाहती। अगर सच में ये गलत लोग हैं तो कहीं माइकल कीट्स का नाम सुनकर हमारी जान को खतरा न हो जाए। माइकल कीट्स ने भी महत्वपूर्ण बातें संदेशों में कहने को कहा है। आपस में हम फ़ालतू की बातें करें।’
‘कमाल है, फ़ोटोग्राफ़र मैं और फ़ोटो तुमने खींच लिए।’ शिल्पा का संदेश उभरा।
‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना लगाना था, तुम्हें पता है इसमें मेरी महारत है।’ नयना ने मज़ाकिया इमोजी भेजी।
टीटी पास आकर खड़ा हो गया। उसने पहले सामने वाली सीट पर बैठे यात्रियों की टिकटें देखीं और उस लड़की को फिर गौर से देखा। उनकी सीटों के ऊपर एक प्रिंटिड स्लिप लगा दी, जिस पर उनके पहूँचने यानी गंतव्य शहर लिखा है। फिर वह उनकी ओर मुड़ा, उनकी टिकटें भी देखीं और उनकी सीटों के ऊपर भी स्लिप लगा दी। उसने उन्हें भी बहुत गौर से देखा। वे दोनों सतर्क हो गईं। वह अगली सीटों की ओर बढ़ गया, उसने उन्हें मुड़कर फिर देखा।
‘क्या बात है यह हमें इस तरह क्यों देख रहा है?’
‘पता नहीं।’ दोनों फुसफुसाई।
नयना ने अपना कंप्यूटर निकाला और शिल्पा ने अपनी किताब।
स्टेशन आने की घोषणा हुई। एक दो लोग उतरने के लिए खड़े हो गए। तेज़ गति से भागती गाड़ी की रफ़्तार धीमी हुई। गाड़ी ने एक लंबी सीटी बजाई! और धीरे-धीरे गाड़ी डरहम, नॉर्थ केरोलाइना स्टेशन पर रुक गई। एक दो यात्री उतर गए। चार पुरुष और दो स्त्रियाँ फॉर्मल कपड़ों में सजे-धजे चढ़े। उनके कन्धों पर किसी कांफ्रेंस में शामिल होने के बैच लगे हैं; इसका मतलब वे किसी कांफ्रेंस के बाद अपने शहर लौट रहे हैं। उनके डिब्बे में प्रवेश करते ही गाड़ी चल पड़ी। दोनों हट्टे-कट्टे बलिष्ठ युवकों के साथ ख़ाली पड़ी सीटों पर फॉर्मल कपड़े पहने एक-एक पुरुष बैठ गए और फॉर्मल कपड़े पहने दोनों महिलाएँ शिल्पा और नयना के आगे की खाली हुई सीटों पर और बाकी के दोनों पुरुष शिल्पा और नयना के पीछे डिब्बे की अंतिम सीटें जो खाली पड़ी हैं, वहाँ बैठ गए। उन छहों ने जब डिब्बे में प्रवेश किया था, किसी विषय पर बहस कर रहे थे। बैठते ही फिर शुरू हो गए। बातचीत से महसूस हुआ, किसी टेक्नोलॉजी पर उलझे हुए हैं। उन छहों की बातें डिब्बे में गूँजने लगीं।
‘अब लगा रेलगाड़ी में सफ़र कर रहे हैं।’
‘वह भी देसी रेलगाड़ी में।’ कह कर दोनों हँस पड़ीं।
नयना के फ़ोन पर संदेश उभरा, जो उसके खुले कंप्यूटर पर नज़र आया- ‘अगर हम जो सोचते हैं, ये वही लोग हैं तो रेलगाड़ी से सफ़र क्यों कर रहे हैं? यहाँ तो किसी को भी शक हो सकता है। अपनी कार में क्यों नहीं गए ?’
‘तुम भी कमाल करती हो! अपने चारों ओर देखो, कौन परवाह कर रहा है? किसी ने ध्यान भी दिया। अगर हम खोजी पत्रकार न होतीं, अगर हमने पिछले दिनों स्त्री-शोषण पर उस ख़ास सेमिनार में भागीदारी न ली होती तो हम भी बाकी लोगों की तरह होतीं। भूल गई, उस सेमीनार में बताया नहीं गया था, कि ध्यान बाँटने के लिए भी शोषक तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। हो सकता है लड़की कोई और ले जाई जा रही हो और यह ध्यान भटकाने के लिए हो। इसकी जानकारी भी उसी सेमिनार में मिली थी कि लड़कियों के लिए ‘माल’ ‘सब्जेक्ट’ शब्द प्रयोग किए जाते हैं।’
‘कोई और लड़की तो नज़र नहीं आ रही।’
‘अरे आगे इतनी लड़कियाँ बैठी हैं। क्या पता किसे ले जा रहे हैं! हम शक इस पर कर रहे हैं।’
पिछली सीट से थोड़ी दूरी पर ही रेस्टरूम यानी वाशरूम बने हुए हैं। वाशरूम सिर्फ दो हैं, और वहाँ जाने वालों की बड़ी क़तार बन गई।
शिल्पा और नयना के पीछे बैठे फॉर्मल कपड़ों वाले दोनों पुरुष खड़े हो गए तो नयना और शिल्पा का भी चैटिंग से ध्यान टूटा। बाशरूम जाने के लिए बनी क़तार पीछे बैठे उन पुरुषों तक पहुँच गई तो उन्होंने अपनी महिला मित्रों को कहा-‘लॉन्ग क्यू इस डिस्टर्बिंग अस, वुई कैन नॉट सिट हियर’ और वे आगे चले गए, जहाँ डिब्बे के शुरू में एक गोलमेज़ के इर्द-गिर्द गोल सोफ़ा पड़ा है। वहाँ पहले से ही एक ग्रुप बैठा था हालाँकि वहाँ दो सीटें खाली थीं, नयना और शिल्पा वहाँ नहीं बैठीं थीं, वे पीछे आ बैठीं। पर वे दोनों पुरुष वहाँ जा कर बैठ गए।
टीटीई फिर आया, नए यात्रियों की टिकटें चैक कीं और उनकी सीटों पर स्लिप लगा दी। तभी दो कसरती बदन वाले बहुत सुंदर सिक्योरिटी ऑफ़िसर दूसरे डिब्बे से इस डिब्बे में आए। उन्हें देखते ही शिल्पा के मुँह से अचानक निकल गया, ‘हाउ हैंडसम!’ अनजाने में अवाज़ थोड़ी ऊँची हो गई! कहने के बाद ही वह झेंप गई। टीटीई उसे देख कर मुस्कराया और ऑफ़िसर भी मुस्करा दिए पर उनकी चौकन्नी ऑंखें चारों ओर घूम रही है। पूरे डिब्बे का निरीक्षण करके जब वे अगले डिब्बे की ओर बढ़े तो नयना और शिल्पा के पास से निकलते हुए उन्होंने उन्हें ‘थैंक्स’ कहा।
‘शिल्पा तुम भी न बस।’ नयना नाराज़गी का अभिनय करती बोली।
‘सॉरी, भूल गई कि रेलगाड़ी में बैठी हूँ। पाँच साल से हम इस देश में हैं, ऐसे सुंदर लड़के दिखे नहीं। बस काबू नहीं रहा।’ उसकी बात पूरी भी नहीं हुई, कि वह लड़की वॉशरूम जाने के लिए उठी। उसके पीछे बैठा हट्टा-कट्टा बलिष्ठ युवक भी उठा। वह लड़की ज्योंही सीटों की कतारों के बीच के रास्ते में आई, उनके आगे बैठी फॉर्मल ड्रेस वाली महिला उसके पीछे रेस्टरूम की ओर हो ली। उस युवक को अपनी सीट से निकलकर बाहर आने में समय लगा, उसके पास बैठा फॉर्मल कपड़ों वाला व्यक्ति ऑंखें बंद किये टाँगे फैला कर बैठा है। युवक को उसे हिला कर जगाना पड़ा।
‘शिल्पा यह पैसेंजर तो अभी आया था और सो भी गया।’
जब तक वह हट्टा-कट्टा युवक सीट से बाहर निकल कर रास्ते पर आया, तब तक वह लड़की और फॉर्मल ड्रेस वाली महिला वॉशरूम के पास पहुँच गईं। पता नहीं नयना को क्या हुआ वह भी वाशरूम की ओर चल दी। महिला के पीछे खड़ी हो गई। वह महिला नयना को देख कर मुस्कराई। वह भी मुस्करा दी। यह तो इस देश का चलन है, अजनबी को देख कर भी मुस्करा देते हैं। एक वॉशरूम ख़ाली हुआ। जो व्यक्ति अंदर से बाहर आया उसके निकलते ही वॉशरूम का दरवाज़ा बंद हो गया। उस लड़की ने दरवाज़ा खोलना चाहा, उससे खुला नहीं। लगता है जैसे उसमें ताकत नहीं जिससे वह दरवाज़ा खोल सके। वह लड़की रोने वाली हो गई। बंद होने के बाद दरवाज़ा अड़ रहा था, थोड़ा धक्का देने और सरकाने से खुलता। तभी फॉर्मल ड्रेस वाली महिला आगे होकर दरवाज़ा खोलने लगी। उसने लड़की को भी दरवाज़े के साथ जुड़ कर ज़ोर लगाने को कहा और ख़ुद भी ज़ोर लगाने लगी। नयना उन दोनों के पास ही खड़ी है, महिला ज़ोर लगाने का अभिनय करने लगी। नयना जान गई और उसने देखा उस महिला के हाथ में एक चाबियों का गुच्छा है और गुच्छे को पकड़ने के लिए एक आकृति-सी बनी हुई है जो चाबियों के साथ ही लटक रही है। उस आकृति के एक बड़े हिस्से में आँख बनी हुई है। नयना को समझने में देर नहीं लगी कि उस महिला ने आकृति को नहीं गुच्छे को पकड़ा हुआ है। ज़ोर लगाते समय बड़े स्वाभाविक ढंग से चाबियों के गुच्छे में वह आकृति और उसकी आँख लड़की के बदन के अलग-अलग हिस्सों को छू रही है। इतनी स्वाभाविक प्रक्रिया हो रही है कि किसी को शक नहीं हो सकता। नयना पत्रकार है और उसका अवलोकन भी बहुत तेज़ और मज़बूत है, समझ गई कि ये सब किसी कांफ्रेंस से नहीं आ रहे, ये तो माइकल कीट्स के भेजे हुए फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ लॉ के ऑफ़िसर हैं। नयना उन दोनों के सामने ऐसे खड़ी हो गई कि आँख वाली आकृति जब उस लड़की के बदन को छुए तो कोई देख न पाए। तभी अचानक उस लड़की का युवा साथी आ गया दरवाज़े पर ज़ोर लगाने के लिए। उसके आते ही उस महिला ने त्वरित दरवाज़ा खोल दिया और वह लड़की अंदर चली गई।
दूसरे वाशरूम का दरवाज़ा खुल गया, महिला ने उस हट्टे-कट्टे बलिष्ठ युवक को इशारा किया कि वह वहाँ चला जाए। वह फिर लाइन में सबसे आगे खड़ी हो गई। नयना ने पीछे घूम कर देखा; जो फॉर्मल कपड़ों वाला व्यक्ति इसी बलिष्ठ युवक के साथ वाली सीट पर ऑंखें बंद किये लेटा था, वह भी लाइन में आ खड़ा हुआ है। अच्छा तो ये सब एक-दूसरे की ढाल बने खड़े हैं। ओह तो इनको कोई लीड मिल चुकी है! वाह… और किसी को खबर तक नहीं!
दोनों वाशरूम काफी देर बंद रहे। सब बाहर खड़े इंतज़ार कर रहे हैं। गाड़ी तेज़ रफ़्तार और छुक-छुक की आवाज़ के साथ अपनी गंतव्य दिशा की ओर बढ़ रही है। जब वह लड़की बाहर आई तो फॉर्मल ड्रेस वाली महिला एकदम से अंदर जाते-जाते लड़की से टकरा गई और उसके अगले हिस्से के साथ इस तरह से लगी कि उसकी चाबियों का गुच्छा उसके बदन को छू गया। फिर अंदर जाते हुए उसने -‘सॉरी! टू मच प्रेशर! नेचरज़ कॉल!’ कहा और दरवाज़ा बंद कर लिया। उसी समय उस लड़की के साथ वाला व्यक्ति भी बाहर निकल आया। नयना दूसरे वाशरूम की ओर मुड़ी तो उसने देखा कि उसके पीछे वॉशरूम जाने वालों की लाइन बन गई है।
वाशरूम से शिल्पा को नयना ने संदेशा भेजा-‘अरे सारा ग्रुप जो फॉर्मल कपड़े पहने गाड़ी में चढ़ा है, वे माइकल कीट्स के ऑफ़िसर हैं।’
‘लगता है कोई लीड उन्हें मिली है।’ शिल्पा ने उत्तर दिया।
‘यस, लग तो यही रहा है। हमारे आगे बैठी फॉर्मल ड्रेस वाली जो महिला वाशरूम जाने को उठी थी, जिसके पीछे मैं हो ली थी। उसके हाथ में एक चाबियों का गुच्छा है, जिसमें एक आँख बनी है। वह ‘बॉडी स्कैनर’ है। उससे उसने बड़ी कुशलता से उस लड़की की बॉडी को स्कैन कर लिया है।’ नयना ने जवाब दिया।
‘क्या ? बॉडी स्कैनर? यह समझ नहीं आया।’ शिल्पा ने हैरानी की इमोजी डालते हुए पूछा।
‘मुझे भी समझ नहीं आया। पर उसने अलग-अलग कोनों से बॉडी को स्कैन किया है। यह मैंने देखा है। कुछ तो उन्हें पता चला है।’ नयना ने लिखा।
वाशरूम से लौट कर नयना चुपचाप आकर बैठ गई। दोनों कुछ नहीं बोलीं। शिल्पा संजय गुप्ता की पुस्तक-‘कीप शार्प, बिल्ड ए बैटर ब्रेन’ पढ़ रही है। नयना अपने कंप्यूटर में कुछ आर्टिकल देखने लगी। सिक्योरिटी वाले अब पिछले डिब्बे से उनके डिब्बे में अपना नैत्य कर्त्तव्य निभाते हुए आए। उन दोनों को पता तब चला जब वे चारों ओर देखते हुए अगले डिब्बे की तरफ बढ़े।
‘अरे इनके आने का पता ही नहीं चला, एक बार और देख लेती तो ठण्ड पड़ जाती।’
‘तू पूरी नौटंकी है।’ दोनों हँस पड़ी।
गाड़ी कभी सीटी बजाती और कभी छुक-छुक की आवाज़ करती आगे बढ़ रही है। रेलगाड़ी के इस डिब्बे के आगे गोलमेज़ के इर्द-गिर्द बैठे यात्रियों ने ताश खेलनी शुरू कर दी है। फॉर्मल कपड़े पहने दोनों व्यक्तियों ने अपनी-अपनी टाई ढीली कर ली है और वह टाई अब गले में लटक रही है। वे बड़े इत्मीनान से बैठे गोलमेज़ के अन्य यात्रियों के साथ ताश खेल रहे हैं; जबकि उनके बाकी चार साथी बड़ी एकाग्रता से अपने-अपने कंप्यूटर पर काम कर रहे हैं। उस लड़की ने फिर अपनी टाँगों को इकट्ठा कर, घुटने अपनी छाती से लगा कर अपना सिर घुटनों में छिपा लिया है। हर यात्री अपने आप में मस्त-व्यस्त है। कोई किसी दूसरे की ओर ध्यान नहीं दे रहा।
अगले स्टेशन ग्रींसबोरो की घोषणा होने लगी। गाड़ी की तेज़ रफ़्तार कुछ पलों बाद धीमी हो गई और फिर धीरे-धीरे, ढिचकूँ-ढिचकूँ की आवाज़ करती गाड़ी रुकनी शुरू हुई। ज्योंही गाड़ी रुकी, डिब्बे में यात्रियों के चढ़ने से पहले ही उस लड़की की अगली सीट और पिछली सीट पर उसके साथियों के साथ बैठे फॉर्मल ड्रेस में ऑफ़िसर्ज़ ने दोनों हट्टे-कट्टे बलिष्ठ युवकों पर रिवाल्वर तान दीं। नयना और शिल्पा के आगे बैठी फॉर्मल ड्रेस वाली महिला ने द्रुत गति से उस लड़की के साथ बैठे उसके साथी अधेड़ उम्र के लंबे-चौड़े पुरुष की कनपटी पर रिवॉल्वर रख दी। आगे गोलमेज़ पर बैठे ताश खेलते ढीली टाई वाले ऑफ़िसर्ज़ में से एक त्वरित डिब्बे से आगे वाले डिब्बे के रास्ते पर खड़ा हो गया और दूसरा भाग कर पीछे के डिब्बे के प्रवेश द्वार पर। यह सब इतनी तेज़ गति से हुआ, डिब्बे में बैठे यात्रियों को कुछ समझ नहीं आया। डिब्बे के प्रवेश द्वार से दो महिला और एक पुरुष पुलिस ऑफ़िसर आ गए। रेलगाड़ी के सिक्योरिटी ऑफ़िसर जो आगे वाले डिब्बे में चले गए थे, पता नहीं कहाँ से, कब वे वहीं पर आ गए। हैरानी की बात है डिब्बे में बैठे यात्री शांत, चुप बैठे हैं, कोई शोरगुल नहीं, चीखना-चिल्लाना नहीं, बेचैनी और घबराहट तो स्वाभाविक है, पर भगदड़ नहीं ; क्योंकि सिक्योरिटी ऑफ़िसर उन्हें चुप और शांत रहने का इशारा कर रहे हैं। डिब्बे में चढ़ने वाले यात्री यह दृश्य देख कर ठिठकते हैं, पर उन्हें खाली सीटों पर बिठाया जा रहा है। उस लड़की और उसके तीनों साथियों के हाथों को पीछे बाँध कर हथकड़ी लगा दी गई है, गाड़ी चलने से पहले ही सब ऑफ़िसर उन्हें लेकर नीचे उतर गए। उनके उतरते ही गाड़ी चल पड़ी। इतनी तेज़ प्रक्रिया, नयना, शिल्पा और यात्री हक्के-बक्के रह गए।
‘शिल्पा, पलक झपकने की देरी ही लगी। इतना शीघ्र सब कुछ हो गया कि अभी तक समझ नहीं आ रहा, क्या हुआ? यात्री भी शायद इसलिए शांत बैठे रहे, उन्हें कुछ पता ही नहीं चल पाया।’ नयना चारों ओर देखते हुए बोली।
‘क़ानून व्यवस्था गज़ब की है, मैं तो फ़िदा हो गई।’ शिल्पा ने नयना की तरफ देख कर कहा।
‘सिक्योरिटी ऑफ़िसर्ज़ पर।’
‘हा… हा… ‘ उसने हँसते-हँसते कहा-‘हाँ, उन पर भी।’
नयना के मोबाइल ने संदेश आने की ध्वनि दी। नयना ने मोबाइल उठाया- माइकल कीट्स का संदेश है। उसने शिल्पा को भी पढ़ने के लिए इशारा किया। पहले उसने अपनी सीटों के आगे और पीछे देखा, सीटें ख़ाली थीं, फिर उसने अंग्रेज़ी में लिखा पत्र हिन्दी में बड़ी भावना से पढ़ना शुरू कर दिया, दोनों सहेलियों में वह ड्रामेबाज़ है, हर पल का बहुत आनंद लेती हैं-
‘धन्यवाद ! धन्यवाद ! नयना ग्रोवर। आप जैसी सतर्क पत्रकार, जागरूक नागरिक की इस देश और समाज को बहुत ज़रूरत है। काश! आप जैसी दृष्टि अन्य नागरिकों की भी हो। आपके संदेश और फ़ोटोज़ ने एक ‘ह्यूमन ड्रग बॉम्ब’ को समाज में जाने से बचा लिया। लड़की के अंग-अंग में नशीली दवाएँ भरी हुई हैं, जो कई मिलियन डॉलरों में गुप्त रूप से बाज़ार में बेची जातीं और कितने युवाओं के जीवन तबाह होते, गिनती करना मुश्किल हो जाता है। आप हमारी ऑफ़िसर की ढाल भी बनी, जिससे उस लड़की के अंगों में भरी नशीली दवाओं का पता चल पाया, पूरा विभाग आपका आभारी है। हमारे विभाग की तरफ से आपके अखबार के मुख्य संपादक को आपका और आपकी मित्र शिल्पा पटेल के प्रशंसात्मक पत्र भिजवा दिए जाएँगे।’
डिप्टी ब्यूरो चीफ़
माइकल कीट्स
‘हे भगवान्, मैं तो कुछ और ही सोचती रही, निकला कुछ और!’ शिल्पा बहुत उदास सी हो गई।
‘सही कहा, मैं भी तो ‘मानव तस्करी’ का केस समझ रही थी। हाय, तभी वह लड़की बहुत तकलीफ में थी, उसका अंग-अंग ज़ख़्मी था।’
‘नयना, मानव कौम जानवरों से भी बद्तर है। इतनी क्रूरता इनमें कहाँ से आती है!, सोच कर ही रोंगटे खड़े हो रहे हैं। ज़ालिमों ने लड़की को ज़िंदा लाश बना दिया। इनके घर में माँ-बहनें नहीं।’
‘शिल्पा, यह संक्रमण का समय है, इसमें सबसे पहले जीवन मूल्य टूटते हैं और इंसानियत का हनन होता है। वही हो रहा है।’
‘नयना, यह टूटन मैं देख रही हूँ, इसलिए खून खौलता है।’
‘चल उठ, तुम्हें गुस्सा आ रहा है। खाने के लिए कुछ देखें और एक-एक कप कॉफ़ी पीएँ। जिस शादी में जा रहे हैं, उसकी रस्में शायद हम दोनों का मूड बदल दें।’
‘मूड क्या इतनी जल्दी बदला जा सकता है, तुम भी बस…।’
‘शिल्पा कुढ़ने से कुछ हासिल नहीं होने वाला, हम जो कर सकती थीं, कर दिया। चल उठ, भूख लगी है।’ नयना ने शिल्पा को बाँह से पकड़ कर उठाया।
‘एक बात मुझे अजीब लग रही है, अभी तो टीम माइकल को मिली भी नहीं होगी, उसे कैसे पता चला कि तुम उसके ऑफ़िसर की ढाल बनी। बात ‘डाइजेस्ट’ नहीं हो रही।’ शिल्पा ने उठते हुए कहा।
‘उस ऑफ़िसर के आगे खड़े होते हुए मैंने देख लिया था, उसके कंधे पर लगे बैच में छोटा-सा कैमरा लगा है। जिसे आमलोग देख कर भी नहीं देख पाते। दफ़्तर में बैठा माइकल और उसके साथी यहाँ चल रहा सब ‘एक्शन’ और कार्यवाही को अपने ऑफ़िसरों के कैमरों से देख रहे होंगे। तभी तो माइकल ने लिखा। फॉर्मल कपड़ों वाली महिला के चाबियों के गुच्छे में लगी आँख जैसे बॉडी स्कैनर से उस लड़की की बॉडी स्कैन करते हुए उनको पता चल गया कि उस के अंगों में ड्रग भरी है। बाकी की बातें डाइनिंग एरिया में बैठ कर करते हैं।’ नयना ने शिल्पा को चलने का इशारा करते हुए कहा।
वे दोनों रेलगाड़ी के भोजनालय की ओर बढ़ गईँ। रेल गाड़ी सीटी बजाती और छुकछुक की आवाज़ करती पटरी पर दौड़ती रही।
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सुधा ओम धींगरा
उपन्यासकार, कहानीकार, कवि और संपादक हैं।
प्रकाशित कृतियाँ- दो उपन्यास, दस कहानी संग्रह, दो कविता संग्रह, एक निबंध संग्रह, बारह संपादित पुस्तकें। 150 पुस्तकों में साहित्यिक सहयोग। दो कहानी संग्रह और एक कविता संग्रह पंजाबी में, एक कहानी संग्रह असामी में, एक मलयालम में अनूदित। भारत और विदेशों की तकरीबन 1000 पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ और आलेख प्रकाशित। साहित्य पर आठ आलोचना ग्रन्थ, छह शोध ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।
सम्मान एवं पुरस्कार-केंद्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा द्वारा 2014 का पद्मभूषण डॉ.मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार माननीय राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति भवन में दिया गया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा 2013 का ‘हिन्दी विदेश प्रसार सम्मान’। स्पंदन संस्था, भोपाल की ओर से 2013 का स्पंदन प्रवासी कथा सम्मान, अन्य अनेकों पुरस्कार।
संप्रति: प्रमुख संपादक- ‘विभोम-स्वर’त्रैमासिक पत्रिका।
संरक्षक एवं सलाहकार संपादक-‘शिवना साहित्यिकी’।
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन की उपाध्यक्ष और सचिव हैं।
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