कविता धरोहरः अमृता प्रीतम


दोस्तो !

रात का शिकवा, कि दिन जाने को था
मेरी दहलीज पार कर
मुठ्ठी-भर सितारे चुराकर ले गया

दिन का शिकवा कि रात जाने को थी
मेरी देहलीज पार करके
मुठ्ठी-भर किरण चुराकर ले गई

होंठ चांदी के कटोरे थे
मिसरी का एक टुकड़ा घोलकर–

फिर रात मुस्कुराई और दिन हंस दिया
सितारा कोई कम नहीं
किरणें पूरी-कि-पूरी थीं

भेड़ों की चोरी/ चरवाहों की चोरी
बन्दूकों की चोरी / सिपाहियों की चोरी
यह कैसी चोरियां हैं दोस्तों,

ये इल्जाम कैसे हैं !
और राजनीति के हाथ में
ये जाम कैसे हैं !

जो दुनिया का आंगन सजाए
उस हुस्न की चोरी करो !
जो अदब के कायदे सिखाए
उस इश्क की चोरी करो !
जो इंसान की किस्मत लिखे
उस कलम की चोरी करो !

दिल की देहलीज पार कर
बाँहों के किवाड़ खोलकर
यह दौलत चुराओ !

होंट चाँदी के कटोरे हैं
मिसरी का टुकड़ा घोलकर
कोई तोहमत लगाओ !

ये सभी दौलतें हैं—
अगर चोरी करो
तो सब चोरियां मुबारक !
अगर तोहमतें लगाओ
तो सब तोहमतें प्यारी हैं—

मजबूर

मेरी मां की कोख मजबूर थी…
मैं भी तो एक इंसान हूं
आजादियों की टक्कर में
उस चोट का निशान हूं
उस हादसे की लकीर हूं
जो मेरी मां के माथे पर
लगनी जरूरी थी

मेरी मां की कोख मजबूर थी

मैं वह लानत हूं
जो इनसान पर पड़ रही है
मैं उस वक्त की पैदाइश हूं
जब तारे टूट रहे थे
जब सूरज बुझ गया था
जब चांद की आंख बेनूर थी

मेरी मां की कोख मजबूर थी

मैं एक जखम का दाग हूं,
मैं मां के जिस्म का दाग हूं
मैं जुल्म का वह बोझ हूं
जो मेरी मां उठाती रही
मेरी मां को अपने पेट से
एक दुर्गंध-सी आती रही

कौन जाने कितना मुश्किल है
पेट में एक जुल्म को पालना
अंग-भंग को झुलसाना
और हड्डियों को जलाना
मैं उस वक्त का फल हूं—
जब आजादी के पेड़ पर
बौर पड़ रहा था
आजादी बहुत पास थी
बहुत दूर थी

मेरी मां की कोख मजबूर थी…

वारिस शाह से !

आज वारिस शाह से कहती हूँ—
अपनी कब्र में से बोलो !
और इश्क की किताब का
कोई नया वर्क खोलो !

पंजाब की एक बेटी रोई थी
तूने उसकी लम्बी दास्तान लिखी

आज लाखों बेटियां रो रही हैं
वारिस शाह! तुमसे कह रही हैं:

ऐ दर्दमंदों के दोस्त,

पंजाब की हालत देखो
चौपाल लाशों से अटा पड़ा है ;
चनाब लहू से भर गया है

किसी ने पांचों दरियाओं में
जहर मिला दिया है
और वही पानी
धरती को सींचने लगा है

इस जरखेज धरती से
जहर फूट निकला है
देखो, सुर्खी कहां तक आ पहुंची !

और कहर कहां तक आ पहुंचा !

फिर जहरीली हवा
वन-जंगलों में चलने लगी
उसमें हर बांस की बांसुरी
जैसे एक नाग बना दी

इन नागों ने लोगों के होंठ डंस लिए
फिर ये डंक बढ़ते चले गए
और देखते-देखते पंजाब के
सारे अंग नीले पड़ गए

हर गले से गीत टूट गया,
हर चरखे का धागा टूट गया
सहेलियां एक दूसरे से बिछुड़ गईं,
चरखों की महफिल वीरान हो गई

मल्लाहों ने सारी किश्तियां
सेज के साथ बहा दीं
पीपलों ने सारी पेंगें
टहनियों के साथ तोड़ दीं

जहां प्यार के नग्मे गूंजते थे
वह बांसुरी जाने कहां खो गई
और रांझे के सब भाई
बांसुरी बजाना भूल गए

धरती पर लहू बरसा,
कब्रों से खून टपकने लगा
और प्रीत की शहजादियां
मजारों में रोने लगीं

आज जैसे सभी ‘ कैदी ‘ बन गए
हुस्न और इश्क के चोर

मैं कहां से ढूँढ़ लाऊं
एक वारिस शाह और
वारिस शाह ! मैं तुमसे कहती हूं
अपनी कब्र से उठो

और इश्क की किताब का
कोई नया वर्क खोलो !

अमृता प्रीतम

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